अरे ओ बंदर..!
अरे ओ बंदर..!
अरे ओ बंदर पहन पजामा
बैठा ऊंची डाली पर
दिन भर छतपर ऊधम मचाता
धौंस जमाता माली पर।
स्वभाव से तू मस्तमौला
पर करता हरदम खटपट है
नटखट ये तेरी शैतानी
खाता केले झटपट है।।
कभी उछल कर इधर उधर
समान छीन लेता है तू
लड़ता है झगड़ता हरदम
खाली बैठे कभी ऊंघता है तू।
अचरज होता तेरी पकड़ पर
लटका कैसे तू डाली पर
बच्चे देख कभी डर जाते
कभी हंसते तेरी नादानी पर।।
कभी तू मारे हरदम गुलाटियां
ये करतब हमें भी सिखला दे यार
जिस गुरु से सीखा तुमने
तू उसका पता हमें बता दे यार।