अरे ओ बंदर
अरे ओ बंदर
अरे, ओ बंदर,तू तो है बड़ा कलंदर
कैसे झूल रहा तू, पेड़ों के उपर,?
अचंभित हूं मै तेरी पकड़ पर,
लटका है, कैसे तू डाली पर?
स्वभाव से तू मस्त मौला है,
पर है तू बड़ा ही नटखट,
करे उछल कूद तू इधर उधर,
ना कभी तू बैठे चुप होकर,
कभी तू लड़ता कभी झगड़ता,
कभी तू बैठा खाली ऊंघता,
तेरी ये नादानी ,करता तू सदा शैतानी।
केला तुझे है बहुत ही भाता ,
जड़ी बूटी और पत्ते भी खाता,
पकड़ है तेरी बहुत ही अद्भुत ,
देख मुझे अक्सर ही भाता,
कौन सिखाए तुझे गुलाटियां मारना,
हम को भी सिखला दे यार
जिसने तुझे सिखाया,
तू मुझे उसका पता बता दे,यार।
