अपना पता
अपना पता
कौतुक भरे मन में
तुक मैं अपनी लगा देता हूं
तुम ठहरो तो सही
मैं अपना पता बता देता हूं ।
समय के चक्र में स्थित
मैं परिस्थितियों का पता हूं
रोज अपने पते की खोज में
स्वयं को मैं लापता पाता हूं ।
सुर मय ताल के मौसम में
मन मैं अपना भिगोता हूं
तुम भिगो तो सही
मैं अपने आंसु गिराता हूं ।
गिरते उठते विचारों के वेग को
मैं अपने मन में समाता हूं
भाता नहीं हूं मैं खुद को
पर किसी को अपना दुख नहीं बताता हूं ।
हवा हूं बहकर चला जाता हूं
किसे क्या फर्क पड़ता है
मैं अनजान बना सबकी निगाहों में
पर खुद को जानने की कोशिश करता हूं ।
हताश हूं मैं तुम पर विश्वास कर
मैं खुद पर विश्वास नहीं कर पाता हूं
चाहों तो मुझे अपनी छुअन से महसूस करना
मैं हवा सा पास हूं जो दिख नहीं पाता हूं ।
पास हूं मैं तुम्हें याद कर
करता हूं मैं खुद से बातें
तुम बातों में याद कर देखो तो सही
मैं तुम्हारीं यादों की बातें स्वयं को सुनाता हूं ।
जब दम घुटकर मरना ही लिखा
तब हवा होने का गर्व महसूस कर लूंगा
मैं स्वयं की सांस को हवा में समाकर
मैं तुम्हें अहसास अपना कराता रहूंगा ।
कौतुक भरे मन में
तुक मैं अपनी लगा देता हूं
तुम ठहरो तो सही
मैं अपना पता बता देता हूं !!