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Dr Mousumi Parida

Others

4.3  

Dr Mousumi Parida

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अनमोल पल

अनमोल पल

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स्कूल से निकलते ही बड़े हो गए थे

वह खुश नुमा पल कहाँ गुम गए थे।

वहीं कहीं गूंज रहा होगा हमारी यादें

वहीं कहीं दीवार पर लटक रहा होगा

धुँधली सी एक तस्वीर ।

पाँव के निशान मिट गए होंगे तो क्या 

दिल पे दस्तक देते हैं आज भी।

मन तरसता होगा उन लम्हों को 

बड़े होने का अफसोस जता के 

समय हँस रहा होगा।

उन बातों को याद करते ही

दिल में खुशी और होठों में हंसी

छलक रहा होगा।


बेंच पे आज भी 

रेखांकित घरों में कैद होगा कुछ नाम

ओर कुछ पान के पत्तों के अंदर

ये दोस्त भी कितने कमीने थे

टिफ़िन के साथ आँसू भी चुरा लेते थे।


मार्क कम या ज्यादा होने पर 

ट्रीट मांगते थे ।

कितने बार स्कूल के बगीचे से आम या 

अमरुद चुराते हुए पकड़े जाते थे।

कभी मुर्गा बनते थे या फिर पिटाई होती थी 

फिर भी हँसते रहते थे

फिर भी अजीज थे


आज भी उतने बेशरम होते तो

जिंदगी बड़ा आसान होता

छोटी छोटी बातों पर गुस्सा नहीं आता।


किसी के पास ज्यादा पैसा या

टिफ़िन नहीं था,

फिर भी घर भूखा कोई नहीं जाता था।

मेरे किताब न जाने किसके बैग में

किसी और की नोट मेरे हाथ,

इन सबका खयाल नहीं था।

फिर भी दिल में सबकी तस्वीर 

लगा रहा था।


अब वे दिन नहीं रहे

वे दोस्त न जाने कहाँ खो गए

फिर भी वे पल आज भी भिगोते हैं आँखें

इस अनजाने शहर में।

दोस्त पास नहीं तो क्या

सब के ठिकाने दिल में छूपा के रखे है।

जिंदगी स्कूल, बेंच और दोस्तों के पास

ठहर गयी है।


समय के बहते नदी के किनारे से

चलो उन दिनों को याद करेंगे।

कुछ बहा देंगे कुछ खोज करेंगे।

बचपन की ताज़गी लिए 

आँखें मूंदे उन पलों को दिल में

फिर से क़ैद करेंगे। 


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