अंधेरा - सूरज
अंधेरा - सूरज
जब घनेरे बादलों सा दुःख मन में घिर गया
बादलों से दर्द बरसा, घुप अंधेरा हो गया
रास्ते ना सूझते थे, आसरे सब खो गये थे
दिग्भ्रमित मन होगया था, आस के दीपक बुझे थे
बन्द मैं था ख़ुद बनाये सुदृढ़ कारागार में
रन्ध्र कोई भी नहीं था किसी भी दीवार में
मुक्ति का ना मार्ग था, ना रात दिन होते यहाँ
मन धतूरे के नशे में, डुबाता रहता यहाँ
सैकड़ो वर्षों से शायद बन्द थी यह आत्मा
मैं ज़मी में खो गया था, गुम हुआ परमात्मा
पर अचानक द्वार पर थपकी पड़ी थी प्यार की
ढह गयी थीं सब दिवारें दुःखद कारागार की
रौशनी से भर गया था वह अँधेरा आशियाँ
साज़ दिल में बज उठे थे, झूमता सारा जहाँ
आस का सूरज उगा था, इंद्रधनुषी रंग का
छॅंट गया था वह अंधेरा स्याह जिसका रंग था
रास्ते मंजिल को लेकर समाने आकर खड़े थे
लाल कालीनों से सज कर ख़ैर-मक़्दम कर रहे थे
बंधनों से मुक्त हो कर, आसमॉं में उठ गया
सूर्य की किरणें पकड़ कर मन पखेरू उड़ गया
