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Sujata Kale

Children Stories

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Sujata Kale

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अमूल्य बचपन

अमूल्य बचपन

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झाग भरे इस अमृत से,

नख-शिख तक जाते हैं भीग,

बचपन अगर गुजर गया तो,

कहाँ पाएँगे इसको फिर ?


अजुंली में भर भर कर पानी,

जी लेते हैं यह मस्ती सारी,

थोड़ी सी राहत इस गर्मी से,

मिल जाए तो किस्मत से यारी।


कितना पारदर्शक है जल,

बचपन जितना अमूल्य जल,

कल कल करता बहता झरना,

जो महँगा हो जाएगा कल।


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