अमीरी गरीबी और यारी
अमीरी गरीबी और यारी
याद आया मुझे बचपन और इसकी यारी,
जब वो गरीब था और खा लेता था मेरा टिफ़िन भी,
तब फासले समझते नहीं थे..........
अमीरी ने जब से उसके यहाँ दस्तक दी,
तो दोनों के दरमियाँ दूरी तन की भी मन की भी,
बस फासले बढ़ते गए.................
वो मॉल की बातें करता हम बाज़ार की,
ठक-ठक करती हमारी फटफटिया उसकी लम्बोरगिनी,
बस फासले बढ़ते गए..................
दो पट्टी वाले चप्पल में हम,वो पहने वरसाची,
वो सूट में था हमने पहन रखी थी एक पतलून पुरानी,
बस फासले बढ़ते गए...................
आज सिगरेट के कश ले रहा वो,मेरे हाथ में बीड़ी,
एक कश मुझे भी दे,वो माँगने लगा मुझसे बीड़ी,
बस इस तरह फासले मिट ही गए.....।