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Shweta Rani Dwivedi

Children Stories Drama Tragedy

4  

Shweta Rani Dwivedi

Children Stories Drama Tragedy

अधिकार

अधिकार

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किसी का अधिकार ना खाइए

 अपने को मान महान,

 दूसरों का अधिकार खाने वाला

सम्मान नहीं पाएगा,

 वह 1 दिन धरती में गढ़ जाएगा,

 इस संसार से कोई कुछ लेकर नहीं जा पाएगा।


 एक औरत होकर भी जो दूसरी औरत को

उसके पति से झूठ का लड़ाएगी,

 एक औरत होकर भी जो दूसरी औरत

 को सम्मान नहीं दे पाएगी,

 एक औरत होकर भी अपनी पोतीयों को

 जो खाना नहीं दे पाएगी,


 पिता के घर पर पोती यों

 को अधिकार नहीं दे पाएगी,

 याद रखना इस संसार से

वो कुछ लेकर नहींं जा पाएगी।


पोतिया के घर पर जो अपने

बच्चों का अधिकार जताएगी

बेटियों को उन्हीं के पिता के

घर में रहने नहींं दे पाएगी

याद रखना उस संपत्ति को

इस संसार से नहीं ले जा पाएगी।


बेटियों को बोझ समझने वाले

यह कब समझेंगे

पोतिया का अधिकार खाकर

तुम धर्म नहीं कर पाओगी

उन मासूम बच्चियों का अधिकार

छीनने वाली यह सब तुम

ऊपर लेकर नहीं जाओगी।


 कैसा पिता है जो अपनी ही

बेटियों का अधिकार नहीं दे पाता,

अपनी बच्चियों के संपत्ति पर

अपने भाई का अधिकार है बताता,

कैसा पिता जो भारत के

कानून को मान नहीं पाता


दूसरे के द्वारा बताए जाने पर

अपना कानून चलाता

अपनी ही मासूम बच्चियों को

उनका अधिकार नहीं दिलाता


यह कैसा पितृसत्तात्मक अधिकार है

बच्चियों के पिता के संपत्ति पर

उसके भाई का अधिकार है

भाई अपना अधिकार जताता

उन बच्चियों को न्याय नहीं दे पाता।


 मां के मिले उपहार पर बच्चियोंं को

अधिकार नहीं मिल पाता।

 मां के मिले उपहार पर भी

पिता के घर वाले अधिकार जताते

 बच्चियों की बड़ी बुआ बच्चियों के

घर पर अधिकार जताती

 जब तक अपना बच्चा वह खुद पाल नहीं पाती

 अपनी मां को कैसे भाभी को इस घर में ना आने दिया जाए की योजना बनाती

पिता बच्चियों के यह देखकर भी मौन रह जाते

 जान कर भी इस षड्यंत्र का  जवाब नहीं दे पाते |


मासूम बच्चियों को उनके पिता के घर से

लड़कियां होने की वजह से कोई रख नहीं पाता।

 पिता ने जिनका जीवन भर किया वह मां

भाई बहन कोई खड़ा नहीं हो पाता हो पाता 

जब उनके ही पिता के द्वारा

घर चलाना असहज हो जाता।


 बार-बार बच्चियों का तिरस्कार किया जाता,

 उनके पिता को यह बात समझ नहीं आता,

 सब कुछ देख कर भी वह अनदेखा करता जाता,

 बच्चियों को उनके घर में उनका ही अधिकार दे नहीं पाता।


 परिवार का करते हुए पिता सीने में दर्द

 उठ जाता मां भाई बहनोंं का करता जाता।

वही मां भाई बहन बुरे वक्त में उन

बच्चियों के घर पर रहकर उन्ही क़ो उनका अधिकार दे नहीं दे पाते ।

यह अंधा पिता सब कुछ देख कर भी  कुछ कर नहीं पाता।


 पति के घर में जब उसकी  पत्नी को

अधिकार नहीं दे पाई थी तो क्यों बहू

बना कर किसी लड़की को घर में लाई थी

उसकी बच्चियों को क्यों जिम्मेदारी बताई थी



बुरे समय में उसकी बच्चियों का

घर छीन कर उनकी मां के दहेज के

 सामान में अपना अधिकार जताई थी,

 तभी अपने ही पोतियों को रोटी  भी  नहीं दे पाई थी,

जीवन भर जिस भाई का पति ने

पाल पोस कर उसको नौकरी दिलाई थी,

 वह भाई कुछ कर ना चाहा

 सालो साल भाई के घर रहना उसके जिम्मेदारी थी

सालो साल भाभी के दहेज की संपत्ति खाई

 और बुरे समय में, भाई के परिवार का करना 

भाई की जिम्मेदारी बताइए  |


 कहता था जिस दिन कमआऊंगा 

 मां,भाई से बड़ा घर तेरे लिए बनाऊंगा,

 कमाकर भी वह घर नहीं बनाया,

 जीवन भर बैठ कर दूसरे का अधिकार खाया,

 भाभी के भी संपत्ति पर अधिकार जताया,

 मासूम बच्चियों को उनका अधिकार वह दे ना पाया |



 बच्चियों के अंधे पिता को आंखें

होते हुए भी वह देख नहीं पाया था,

बच्चियों के पिता ने जीवनभर जिसका किया,

 उन लोगों ने उसी की बच्चियों का तिरस्कार था किया,

 फिर भी बच्चियों का पिता उन्हीं को

अपना परिवार मानकर सब कुछ सह लिया।

छोटी सी गलती यदि किसी से हो जाये,

तो ये सब मिलकर बखेड़ा  खड़ा करते थे,

 पर जो  गलती खुद करते उसे भूल

जाने कीं सलाह दिया करते थे,


 जो दूसरों का अधिकार खाएगा,

 वह कभी खुश नहीं रह पाएगा,

 जो दूसरों का घर उजाड़ आएगा,

 अपना घर भी वो कभी बना नहीं पाएगा,

 (ईटों के घर तो बहुत बन जाते हैं पर

पति पत्नी साथ निभा नहीं पाते हैं )


 जिसने किया नारी का अपमान है,

 वह कभी सम्मान नहीं पाएगा,

 अपने ही बनाए अपमान के जाल मेंं

 वह खुद ही फंस जाएगा|

 मासूम बच्चियों का अधिकार खाने वालों

 को भगवान कभी माफ नहीं कर पाएगा,

 समय आने पर कानून उन बच्चियों को न्याय दिलाएंगा

 भूले से भी मत सोचना यह मासूम बच्चियों का

अधिकार खाने वाला बच पाएगा।


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