अब्बू
अब्बू
कहां से शुरू करूं मैं कहां खत्म करूं
किन अल्फाजों में मैं उन प्यार को बयां करूं,
वह बचपन में उंगलियां पकड़कर चलना,
वह गोद में सोने की जिद करना,
सुबह फरमाइश करना और रात में पूरी हो जाना,
वो बारिश में भींग कर दवाइयां लाना,
तपती धूप में भी गोदी पर उठाए रखना,
रात भर जागना, फिर सुबह स्कूल छोड़ने जाना।
काम से लौटते ही मुझे ढूंढना,
चॉकलेट पकड़ा कर गोदी में उठा लेना,
अपने साथ खाना खिलाना।
क्या -क्या बताउँ मैं, हर अल्फाज़ कम है,
हर तारीफें कम है, शायद इसलिए ख़ुदा ने
उन्हें ज़न्नत का दरवाजा बतलाया,
हाँ वे मेरे अब्बू हैं।