आज़ाद पंछी
आज़ाद पंछी
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तू क्यूँ बंद करना चाहे चार दीवारी में,
मैं तो आज़ाद पंछी हूँ खुले आसमान की।
तू कब तक बंद करेगा पिंजरे में,
मैं तो हवाओं मिलता पंरिदा हूँ।
कब तक रहूँ मैं कुएँ में ,
मैं तो नदियों की मछली हूँ।
जंजीरों से बंध पायी कहाँ ?
मैं तो खुले आसमा की पंछी हूँ ।
मैं वह शेरनी नहीं जो क़ैद रहूँ ,
मैं तो जंगलों की रानी हूँ।
तू क्यूँ बांधे मुझे इन सीमाओं से,
जब वह अदृश्य है।।