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DEVSHREE PAREEK

Others

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आत्मगौरव…

आत्मगौरव…

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सौंदर्य का वर्णन आने पर

लोगों ने खूब सराहा था

वाणी के मुखरित होने पर

क्यों अधरों पर था मौन बिछा…

क्या सत्य वही, जो तुम मानो

क्या सत्य वही, जो तुम जानो

आदर्शों के ढेरों तले सत्य को

जाने कितनों ने कुचला था…

अधर मौन थे, शीश झुके

सबके समक्ष निवेदन था

किंतु किसी का आत्मसंवेदन

तनिक भी नहीं मचला था…

जाने कितनी ही नित्यायुवनी

जाने कितनी ही जनकदुलारी के

आत्मगौरव को खंडित करते

क्यों पाषण हृदय नहीं पिघला था…

अब जब मैंने शीश उठाया

जब वाणी से विरोध जताया

जब शक्ति का आह्वान उठा

क्यों हृदय तुम्हारा काँप उठा.


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