आओ भीगे बारिश में
आओ भीगे बारिश में

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बनाये कागज की कश्ती
चलाये उसे फिर पानी में,
छपाक- छई करे, खूब भीगे हम
किसी की ना सुने हम बारिश में,
पानी की धार गिरे जब छत से
हम नहाए उसके नीचे,
पापा हमें बुलाए घर में
लेकिन हम घर में तब ही जाये
जब भूख हमें सताए,
उसी समय मांँ की आवाज़ आये
गरम पकौड़े तैयार है किचन में,
दौड़े- दौड़े हम घर में जाते
अपने गीले बालों को
सुखाते मांँ के आंँचल में,
ऐसी थी वो बचपन की यादें
आओ फिर से जिए वो दिन
फिर से भीगे बारिश में...