आंखों की हकीकत
आंखों की हकीकत
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आंखों में हकीकत तो कभी ख्वाब नजर आता है ।
मासूम से चेहरे पर हिजाब नजर आता है ।।
अच्छी नहीं लगती मुझे खामोशियां तेरी ।
खामोश से चेहरे पे अजाब नजर आता है ।।
मूंद ली हैं बेरहम तूने आंखें तेरी ।
बंद आंखों में तेरा जवाब नजर आता है ।।
जानेमन छोड़ दी मैंने तिजारत कब की ।
अब तो खारिज हर हिसाब नजर आता है ।।
क्या मुल्क क्या कौम और क्या दुनियादारी ।
अब तो इश्क में इंकलाब नजर आता है ।।