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आँखों के आँसू

आँखों के आँसू

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बेटी के ससुराल में

पिता के आने की खबर

बेसब्री तोड़ देती बेटी की

आँखें निहारती राहों को

देर होने पर

छलकने लगते आँसू

दहलीज पर आवाज़ लगाती

पिता की आवाज़ -बेटी

रिश्तों,काम काज को छोड़

पग हिरणी सी चाल बने

ऐसी निर्मल हवा

सूखा देती आँखों के आँसू


लिपट पड़ती अपने पिता से

रोता -हँसता चेहरा बोल उठता

पापा इतनी देर कैसे हो गई

समय रिश्तों के पंख लगा उड़ने लगा

मगर यादें वही रुकी रही

मानो कह रही हो

अब न आ सकूँगा मेरी बेटी

मगर अब भी

आँखें निहारती राहों को


याद आने पर

छलकने लगते आँसू

दहलीज पर आवाज़ लगाती

पिता की आवाज़ -बेटी

अब न आ सकी

पिता की राह निहारने के बजाय

आकाश के तारों में ढूंढ रही पापा

कहते है की लोग मरने के बाद

बन जाते है तारे

आँसू ढुलक पड़ते रोज़ गालों पर

और सूख जाते अपने आप

क्योंकि निर्मल हवा कभी

सूखा देती थी आँखों के आँसू

जो अब है थम...



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