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अच्युतं केशवं

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अच्युतं केशवं

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आमंत्रण अखियाँ कहें

आमंत्रण अखियाँ कहें

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आमंत्रण अखियाँ कहें, छुअत सिकोड़े गात।

पापिन की मनुहार में, गयी निगोड़ी रात।

गयी निगोड़ी रात, भोर में कमल खिल गये।

बुझी भ्रमर की प्यास, शहद के कोष मिल गये।

झरा नेह का मेघ, भिगोता कण कण तृण तृण।

बुझी न फिर भी प्यास, करे फिर फिर आमंत्रण।


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