आज का दौर
आज का दौर
1 min
119
ये कैसा अशांति का दौर है ?
हर तरफ आपदा का प्रकोप है I
प्रकृति इंसानो को पछाड रही है,
इंसान परस्पर गुनाहों के देवता को मात दे रहा है I
बुद्धजीवियों की समझ पर व्यक्तित्व भरी है,
और व्यक्तित्व पर कुर्सी की खुमारी I
९९ के फेर ने जऱ, जोरू, जमीं को कब शिकस्त दी
कतई भान न हुआ I
जीवन की शतरंज समझ से परे हो चली है
चिर परिचित नियम फिरंगी हो चले हैं I
उलझने क्या सुलझती है
अनुपातन हम उलझते जाते हैं
