आईना और मैं
आईना और मैं


आईना और मैं, घंटों बातें करते हैं,
कुछ मैं सुनाता हूँ, कुछ वो सुनाता है ।
मेरे हँसने पर हँसता है, मेरे रोने पर रोता है,
मेरे तन्हा होने पर, अपने पास बिठाता है।।
दोस्त है, अपना फर्ज़ बख़ूबी निभाता है।
अपनी दोस्ती पे हम दोनों,
कुछ यों ऐतबार करते हैं ।
आईना और मैं, घंटों बातें करते हैं।।
बचपन में मैं, जब रूठ जाया करता था,
लोगों के तानों से, टूट जाया करता था ।
बंद कमरे में, वो दीवार से टँगा, बस मुझे निहारता था
याद है मुझे, मैं उसे कितना सुनाया करता था ।।
उन लम्हों को आज भी,
हम दोनों कितना याद करते हैं ।
आईना और मैं, घंटों बातें करते हैं ।।