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डॉ. रंजना वर्मा

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डॉ. रंजना वर्मा

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आ गया अनङ्ग

आ गया अनङ्ग

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तितली के पंखों पर

खिला  खिला  रंग ।

      आ गया अनंग ।।


सुनाती हवाएँ हैं

नवल रागिनी

रातें हैं जैसे सब

हुईं चाँदनी ।

सरिता में डोल रही

प्रीति की तरंग ।

    आ गया अनंग ।।


भौंहों की थामी है

काम ने कमान

तक तक कर मार रहा

नयनों के बान ।

मुए हुए उर में भी

उठ रही उमंग ।

     आ गया अनंग ।।


मोहन के हाथों में

प्रीति का गुलाल

बरसाने वाली के

गाल लाल लाल ।

कहती है राधा अब

करो नहीं तंग ।

      आ गया अनंग ।।


शतरंजी गोटी से 

नैन चल रहे

विरही के लेकिन तन

प्राण जल रहे ।

मिलन आस इनकी 

हो कभी नहीं भंग ।

       आ गया अनंग ।।



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