आ गया अनङ्ग
आ गया अनङ्ग
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तितली के पंखों पर
खिला खिला रंग ।
आ गया अनंग ।।
सुनाती हवाएँ हैं
नवल रागिनी
रातें हैं जैसे सब
हुईं चाँदनी ।
सरिता में डोल रही
प्रीति की तरंग ।
आ गया अनंग ।।
भौंहों की थामी है
काम ने कमान
तक तक कर मार रहा
नयनों के बान ।
मुए हुए उर में भी
उठ रही उमंग ।
आ गया अनंग ।।
मोहन के हाथों में
प्रीति का गुलाल
बरसाने वाली के
गाल लाल लाल ।
कहती है राधा अब
करो नहीं तंग ।
आ गया अनंग ।।
शतरंजी गोटी से
नैन चल रहे
विरही के लेकिन तन
प्राण जल रहे ।
मिलन आस इनकी
हो कभी नहीं भंग ।
आ गया अनंग ।।
