कोहरे की खुशबू
कोहरे की खुशबू
याद है तुमको कैसे हम दोनों मिलकर,
सारा कोहरा जी लेते थे,
चाय के कप में सारे लम्हें
घोल-घोल कर पी लेते थे,
याद है तुमको कोहरे की खुशबू कितना ललचाती थी
देर रात भीगी सड़कों पर,
मैं कोहरे के संग भागी जाती थी,
याद है तुमको कोहरे की चादर कितना कुछ ढक लेती थी
दिल के कितने जख्मों पर फाहे रखती थी
दिल के टूटे, बिखरे लम्हों को अंजलि में भर लेती थी
याद है तुमको एक टूटे लम्हें को तुमने थाम लिया था
भीगी सी पलकों को रिश्ते का अंजाम दिया था
वो रिश्ता भी कोहरे की चादर में महफूज रखा है
कोहरे की खुशबू में अब उसकी खुशबू है...

