हत्यारे
हत्यारे
कैसे बदल जाते दैत्य रूप में
जिनका दिल पसीजता नहीं
हवस में बदल लेते ख्वाहिशों को
सोच संकीर्ण औ बांध लेते गांठ को
छलावा-बग़ावत, पहनावा इनका
फायदा इनका, कायदा इनका
रिश्ते- नाते, सब हो जाते बेगाने
बस एक ज़िद्द बन जाती
मार देते अपना ज़मीर को
खून से रंग लेते हाथ को
मार देते सबको, खुद को
बुलंदी पाने की लालसा
इच्छाओं की पूर्ति के लिए
कर जाते है जुर्म
छीन कर दुसरो की खुशियां
मनाते कभी जश्न और
सड़ते सलाखों के पीछे
बन जाते हैं वो हत्यारे।