मेरा नाम आदित्य पाठक है ।हिन्दी साहित्य से स्नातकोत्तर हूँ ।स्वर्णपदक प्राप्त हूँ।जे.आर.एफ.हूँ ।शोधार्थी हूँ।
देह तक ही तुम्हारी विजय है पर, मैं तो देह नहीं हूँ देह तक ही तुम्हारी विजय है पर, मैं तो देह नहीं हूँ
मैं कुछ कर न सकता था न यह सह सकता था इसलिए निकल गया मैं दूर उस भीड़ से । मैं कुछ कर न सकता था न यह सह सकता था इसलिए निकल गया मैं दूर उस भीड़ से ...
तब तक जारी रहेगी जब स्वयं लक्ष्य नत मस्तक न हो जाए। तब तक जारी रहेगी जब स्वयं लक्ष्य नत मस्तक न हो जाए।
तूने यादों के आशियाने में तूने यादों के आशियाने में
फिर एक जाम बना आया। फिर एक जाम बना आया।
जब तू साथ थी तो मरता था उस पे जब तू साथ थी तो मरता था उस पे
वे चाहती हैं बोलना ख़ुद के लिए अपनों के बीच खुलकर ताकि उनकी पीड़ा समझ सके सब वे चाहती हैं बोलना ख़ुद के लिए अपनों के बीच खुलकर ताकि उनकी पीड़ा समझ ...
बदल कर खुद को शायद मिल सकेगा आनंद असीम। बदल कर खुद को शायद मिल सकेगा आनंद असीम।