Poet and writer
नहीं पूछता अब कोई हाले दिल। ये बस्ती भी अपनी नगर हो गई। नहीं पूछता अब कोई हाले दिल। ये बस्ती भी अपनी नगर हो गई।
ओला,बारिश,सूखा,झंझावत,प्रदूषण. की और अंत में ओला,बारिश,सूखा,झंझावत,प्रदूषण. की और अंत में
आज कहीं खो गया है वो मिजाज़ वो प्रयत्न हरियाली का आज कहीं खो गया है वो मिजाज़ वो प्रयत्न हरियाली का
देना है मरकर खुदा को अपने हिसाब फिज़ूलखर्ची का पानी की फ़िर भी...... देना है मरकर खुदा को अपने हिसाब फिज़ूलखर्ची का पानी की फ़िर भी....
भौरे आकर पी रहे, पुष्प रसों के जाम। भौरे आकर पी रहे, पुष्प रसों के जाम।
भौंरे आखिर क्यों रहें, फिर बसंत से दूर। भौंरे आखिर क्यों रहें, फिर बसंत से दूर।
इस तरह प्रकृति ने हर मौसम का मज़ा हमें चखाया है। इस तरह प्रकृति ने हर मौसम का मज़ा हमें चखाया है।
जैसे पर उड़ जाते हैं एक झोंके से पवन के। जैसे पर उड़ जाते हैं एक झोंके से पवन के।
मुझे आज याद आते हैं मुझे आज याद आते हैं
जिसमें तुम पूरे थे और मैं अधूरा। जिसमें तुम पूरे थे और मैं अधूरा।