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मानव सिंह राणा 'सुओम'

Others

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मानव सिंह राणा 'सुओम'

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माँ का रिश्ता

माँ का रिश्ता

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"माँ तुम चलो मैं रोज रोज के हालात से परेशान हो गया हूँ। तुम्हें वृद्धाश्रम छोड़ आता हूँ।" आदेश ने अपनी माँ से झुंझलाते हुए कहा।

माँ और पत्नी सुनीता की रोज की झिक झिक से परेशान हो गया था आदेश श्रीवास्तव।

सुनीता रोज ही किसी न किसी बात पर झगड़ती रहती थी और माँ सुनीता से। माँ राजवंती कुछ बोलती तो बोलती किससे। बेटे से कुछ कहती तो आज बेटा भी उसे वृद्धाश्रम छोड़ने की बात करने लगा था। माँ रोने लगी। बेटे आदेश की परवरिश के दिन उसे आज चलचित्र कि भांति याद आने लगे।

सुनीता को जैसे ही माँ की रोने की आवाज़ सुनाई दी तो किचन से बाहर आ गईं।

" अब क्या हो गया इन्हें ? क्या आंसू दिखा रही हो ? जैसे मैंने कोई तीर मार दिए हों।" सुनीता ने बड़बड़ाते हुए कहा।


" कुछ नहीं अब से घर का सारा लफड़ा खत्म। मैं इन्हें वृद्धाश्रम छोड़ने जा रहा हूँ।" आदेश ने अपना पुराना राग अलापते हुए कहा।

 " क्या वृद्धाश्रम! तुम्हारी जैसी औलाद तो भगवान किसी को ना दें।  जो माँ को वृद्धाश्रम छोड़ने की बात करें। मैं लड़ती हूँ तो अपनी माँ समझ कर। मैं देखती हूँ मेरी माँ को कौन ले जाता है वृद्धाश्रम ? माँ तो यहीं रहेंगी इसी घर में। असली मालकिन तो यही हैं घर की।" कहते हुए सुनीता चिपट कर रोने लगी

आज माँ को भी लग रहा था कि जिसको बहू समझा था वो तो बेटी निकली। अपने पेट से जाया बेटा वृद्धाआश्रम ले जाने की कह रहा था और बहू बेटी बनकर रोक रही थी। आज अपनी परवरिश पर अफ़सोस हो रहा था और बहू के संस्कारों पर गर्व।

"आज मैं आप दोनों की चिक चिक से बहुत परेशान था। ऑफिस में तभी जबलपुर से हमारे सीनियर गौरव नारंग आज ऑफिस आ गए तो उन्होंने मुझसे उदास होने का कारण पूछा तब मैंने उन्हें सब बताया। उन्होंने ही मुझे वृद्धाश्रम वाला विचार सुझाया कि मैं ऐसे कहूं तो उनकी लड़ाई के पीछे का प्यार उजागर हो जायेगा और उनका सुझाव काम कर गया।" आदेश ने ख़ुशी से हाथ मटकाते हुए कहा।


दोनों सास बहू आपस में चिपट कर रो रहीं थी। माँ को अब अपनी परवरिश पर भी गर्व हो रहा था और बेटे को अपनी पत्नी पर गर्व।


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