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Madan lal Rana

Children Stories Inspirational

4  

Madan lal Rana

Children Stories Inspirational

ग़म और खुशी

ग़म और खुशी

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महेश के घर में मातम सा सन्नाटा पसरा था।क्योंकि त्योहार दशहरा नजदीक आ रहा था और घर में एक पैसे का ठिकाना नहीं। जहां खाने-पीने के भी लाले पड़े हैं बच्चे जूतों और कपड़ों के लिए नाक में दम कर रखा था। कोई तुनककर यहां बैठता है तो कोई वहां। बेचारी उर्मिला बच्चों को समझा-समझा कर थक गयी थी कि बस आ ही रहे हैं तुम्हारे पिताजी तुम लोगों के कपड़े और जूते लेकर,परन्तु वे मानने ही वाले कहां थे।सोनू और मोनू दोनों ने मिलकर उसे इतना परेशान किया कि बेचारी माथा पकड़कर बैठ गयी और सोचने लगी।

    महेश के दिल्ली गये महीने भर‌ से उपर हो गया था।कह गया था कि पूजा से सप्ताह दिन पहले ही लौट आयेगा मगर अब तक पता नहीं।जाने से पहले जो रूपये पैसे छोड़ गये थे सब खत्म हो चुके थे। पिछली बार जब पड़ोसी के फोन से बात किये तो जवाब मिला कि " अब एक दो दिन में हीआ रहे हैं सोनू की मां, बस तब तक तुम बच्चों को संभाल लेना।वो क्या है ना कि इन दिनों त्योहार को लेकर स्टेशन पर कुछ ज्यादा ही भीड़-भाड़ हो रही है।आती कमाई को छोड़ कर जाना अच्छी बात नहीं।पर तुम चिंता मत करना। मैं तुम्हारे और बच्चों के लिए कपड़े लेकर जल्द ही आ जाऊंगा।"

     महेेश नई दिल्ली जंक्शन पर कुली के काम में कार्यरत था। जीवन-यापन भर कमाई हो जाती थी । खेती-बाड़ी की वजह से घर में खाने -पीने की कोई कमी नहीं होती थी फिर भी हाथ खर्च और बच्चों की पढ़ाई-लिखाई आदि के लिए वह गांव आने वाले किसी ना किसी सहकर्मी के हाथ हर महीने रूपये भेज दिया करता था। चूंकि इस बार दशहरा त्योहार पर स्वयं ही घर आना था इसलिए रूपये नहीं भिजवाए।ये अलग बात है कि ज्यादा रूपये कमाने के लालच में उसने घर आने में अधिक ही देर लगा दी।जिस कारण पत्नी और बच्चे परेशान थे।

उर्मिला जो बच्चों की हुज्जत से थक हारकर बैठी थी।चोर दृष्टी से देखा दोनों बच्चे आपस में खुसर-फुसर कर रहे थे।उसने सोचा शायद किसी शैतानी की योजना बना रहे हैं उन्हें प्यार से बुलाया---"बेटी सोनू,बेटा मोनू.? यहां आओ"

मां की आवाज सुनकर और उसका बदला रूप देखकर दोनों अचंभित तो हुए पर सहजता से आकर मां के पास खड़े हो गये।

"जी मम्मी...?"

 "यहां आओ मेरे पास और बताओ क्या बात कर रहे थे तुमलोग...?"--उर्मिला ने दोनों बच्चों को अपनी बाहों में भरते हुए पूछा।

"कुछ भी तो नहीं मां.!!---सोनू ने मासूमियत से कहा तो उसने मान लिया और दोनों को समझाने लगी--"देखो मेरे बच्चों,तुम तो ये जानते हो ना कि तुम्हारे पिताजी दूर देश में रहते हैं.?"

 "हां मां"

"और ये भी जानते हो कि हम गरीब हैं और हमारे पास इस समय इतने पैसे नहीं कि तुम्हारे लिए कपड़े खरीद सकें.?"

 ‌‌"हां मां"

" तो फिर जान बूझकर तुम लोग किसी चीज के लिए इतना जिद्द क्यों करते हो,मुझे क्यों इतना सताते हो.?"---बोलते बोलते मां रुआंसी हो गयी यह देख बच्चे भी भावुक होकर मां के गले लग गये और बोले-

"अब बिल्कुल जिद्द नहीं करेंगे मां, जो तुम कहोगी वहीं करेंगे"

"शाबाश.! मेरे बच्चे, तुम्हारे पिताजी से मेरी बात हो गयी है,देखना वो जल्दी ही आ जाएंगे तुम दोनों के लिए अच्छे-अच्छे कपड़े लेकर।"

"आएंगे नहीं आ गये तुम्हारे पिताजी मेरे बच्चों"

तीनों अभी भावनाओं में पल्लवित हो ही रहे थे कि अचानक दरवाजे की तरफ से ये आवाज आयी। सबने पलटकर देखा, सामने महेश अपनी बाहें फैलाये खड़ा था। बच्चों की खुशी का ठिकाना ना रहा।वे दौड़कर पिताजी से लिपट गये और उर्मिला अपने अंदर के हर्षऔर उत्तेजना को संयत करने का प्रयास करने लगी।       


       


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