बहन
बहन
कबीर की दोनों बेटियाँ भागते हुए उसके पास आकर उससे चिपक कर बोली, "पापा बताइए मेरी बहन अच्छी या इसकी बहन अच्छी।" कबीर की दोनों जुड़वा बेटियों में बहुत प्यार था। इस समय दोनों दूसरे को खुद से बेहतर बताने के लिए अपने पापा की मदद ले रही थी। बहने सच में कितनी प्यारी होती है। कबीर को अपनी बहन रंजू की याद आ गई। साथ ही वह दिन जब पहली बार उसकी चाची ने उसे बताया था कि उसका छोटा भाई या बहन आने वाला हैं। उन दिनों शायद यह सब बातें माँ बाप अपने बच्चों से नहीं करते थे। नहीं नहीं कबीर इतने पुराने जमाने का भी नहीं है कि जब माँ बेटी साथ साथ खट्टा खाते थे। वह तो अस्सी के दशक की बात है। हाँ तो जब से कबीर ने सुना उसे बड़ी शर्म आई। तब वह लगभग दस साल का था। उसे थोड़ी शर्म आ रही थी। थोड़ी झुंझलाहट हो रही थी और यह चिंता भी लग रही थी कि दोस्त लोग उसे चिढ़ाएंगे। बाल मन में पता नहीं क्या-क्या घूम रहा था। तब के माँ-बाप आजकल के माँ-बाप की तरह बच्चों को परिस्थितियों के लिए तैयार नहीं करते थे। मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ ...? अरे अभी दस पन्द्रह दिन पहले की ही बात है कबीर के चचेरे छोटे भाई का बेटा राज कबीर के पास आकर बोला, "ताऊ मम्मी पापा मेरे लिए छोटा सा भाई या बहन लाने वाले हैं। अभी मुझे मम्मी की अच्छे से देखभाल करनी है। बेबी को भी मुझे ही संभालना पड़ेगा। वह छोटा सा होगा ना l मुझे मम्मी की सब बातें भी माननी पड़ेगी l क्योंकि बेबी सब कुछ मुझे देख कर ही सीखेगा ना। कबीर ने उससे चिढ़ाते हुए कहा, "वह आकर तुम्हारे सब सामान में हिस्सा बटाएगा। अब तो मम्मी पापा तुम्हें नहीं उसको प्यार करेंगे।" तो उसने समझदारी से कहा, "नहीं ताऊ मैं खुद अपनी चीजे उसके साथ बाँट लूंगा। मम्मी पापा हम दोनों को प्यार करेंगे।"
कबीर को अच्छा लगा कि आजकल के माँ बाप बच्चों के साथ इतना अच्छा रिश्ता रखते हैं। वही उसके समय पर पूरे पाँच छ्ह महीने का समय कबीर ने इसी उधेड़बुन में काटा था। जैसे कबीर ने अपने भतीजे को चिढ़ाया था वैसे ही सब कबीर को चिढ़ाते थे। भतीजे के पास जवाब थे और कबीर के पास नहीं।
अब माँ का स्वभाव भी बदल रहा था। कबीर जाकर माँ से लिपटता तो माँ हटा देती "कबीर धीरे से संभाल कर" और अब तो वह कबीर के साथ रात में सोती भी नहीं थी। कबीर कल्पना करता बहन आएगी तो . . . या भाई आया तो l भाई के आने की कल्पना से खुश रहता है कि भाई आएगा तो मुझे खेलने के लिए साथी मिल जाएगा। बहन तो रोती रहेगी। मेरे साथ कुछ खेलेगी भी नहीं और मम्मी पापा भी उसको ही ज्यादा प्यार करेंगे। एक दिन जब कबीर सो कर उठा तो चाची ने बोला, "अरे कबीर तुम्हारी छोटी बहन आ गई।" कबीर यह सुनकर की बहन आ गई थोड़ा उदास हो गया। कहाँ से आ गई ? कैसे आ गई? मम्मी तो रात को मेरे पास ही सोई थी। कबीर तैयार होकर नाश्ता वगैरह करके चाची के साथ अस्पताल पहुँचा। वहाँ वह माँ के पास लेटी थी। छोटी सी, आँखों की जगह काली रेखा, होंठों की जगह पर भी और भौंहें तो उसकी थी ही नहीं। ये... ? यह मेरी बहन है ? सब तो बोल रहे थे बिल्कुल गुड़िया जैसी है l गुड़िया ऐसी होती है ? माँ ने कबीर को देखा और अपने पास बुला कर गले से लगा लिया। बस माँ से सारी शिकायतें दूर हो गई कि नहीं माँ अभी भी कबीर को ही प्यार करती है। पर यह बहन ना होती तो कितना अच्छा था ....।
माँ अस्पताल से घर आ गई। माँ का अधिकतर समय उसके साथ ही बीतता। माँ कबीर को भी गोद में लेने को कहती तो कबीर ना बोल देता। अब उसकी आँखें खुल गई थी और वह टुकुर-टुकुर सबको देखती थी। माँ की आहट पर तो सिर घुमाती थी। धीरे-धीरे वह बड़ी हो रही थी। माँ ने उसका नाम रंजना "रंजू" रखा। अब सब उसे बोलना सिखाते थे। देखो रंजू म म मम्मी बोलो , कोई कहता प प पापा कोई चा चा चाची और यह देखो द द दादा। रंजू यह तुम्हारा दादा है ,बोलो दादा। समय बीत रहा था। माँ पापा का ध्यान कबीर पर भी था तो कबीर को रंजू से कोई परेशानी नहीं थी। अब थोड़ा-थोड़ा कबीर ने भी उसे खिलाना शुरू कर दिया था। कबीर उसे गोद में लेकर बाहर तक घुमा कर लाता। अब तक जिन दोस्तों के डर से कबीर शर्मा रहा था वह सभी दोस्त उसकी बहन रंजू को देखने और खिलाने आए। कबीर को लगा मैं बेकार ही इतने दिनों तक परेशान रहा।
कबीर को वह दिन आज तक याद है जब उसके स्कूल से अंदर आते ही रोज की तरह वह बोला, "माँ मैं आ गया।" तो वह भी बोल पड़ी "द द।" अब तो वह एक खिलौना थी। सब बोलते पापा बोलो वह बोलती द द , मम्मी बोलो तो वह हँसती और बोलती द द। अब कबीर के मन में उसके लिए थोड़ा सा प्यार उमड़ा था। पर एक दिन की बात है क्लास में सर ने कबीर की कॉपी दिखायी जो उसने जांचने के लिए दी थी। उसमें लगभग सभी पृष्ठों पर पेन से खचाखचा किया गया था। सर ने पूछा तो उसकी आँखों में आँसू आ गए और उसके साथ के सारे बच्चे हँस पड़े। सर अच्छे थे बोले, "अपना सामान सही जगह पर रखा करो। दूसरी कॉपी बना लो।" पर उसे तो रंजू पर इतना गुस्सा आ रहा था कि अब पूरी की पूरी कॉपी उसे वापस बनानी पड़ेगी। अब उसने रंजू से ज्यादा बोलना उसके साथ खेलना बंद कर दिया था।
एक दिन माँ ने बोला कबीर मुझे थोड़ा काम है तुम थोड़ी देर रंजू के साथ खेलो। कबीर उस वक्त बॉल से खेल रहा था। वह झुझंलाया माँ क्या खेलूँ ? माँ बोली, "तुम उसको बॉल दो धीरे से, वह तुमको देगी।" कबीर मन ही मन में भुनभुनाया हुंह लड़की बॉल से खेलेगी ? पर वह दोनों धीरे-धीरे बाॅल से खेलने लगे। एक बार कबीर ने थोड़ा जोर से बॉल मार दिया। बॉल जाकर उसके नाजुक पैरों पर लगी। उसने कबीर को बेदूर ( रोने जैसा मुँह बनाकर) निकालकर देखा। कबीर को लगा अब अगर यह रोई तो मैं गया। उसने अपने कानों को हाथ लगाया जोकरों की एक्टिंग करते हुए उसे सॉरी बोला। वह समझ गई या नहीं यह तो नहीं पता पर वह रोई नहीं पर दूसरे ही पल उसने भी बॉल को जोर से उठाकर फेंका। बॉल कबीर की आँख पर लगीl ज्यादा जोर से तो नहीं, पर लगी। कबीर ने झूठ झूठ रोने का नाटक किया और अपने फिर घूम कर बैठ गया। वह धीरे धीरे ठुमक ठुमककर चलती हुई आयी और दादा कह करके उससे लिपट गई। फिर आँखों पर चुम्मी दी। ठीक वैसे ही जैसे चोट लगने पर माँ देती है। कबीर को इतना प्यार आया रंजू पर। कितनी छोटी है पर कितनी सच्ची। मेरे गुस्सा होने की, चोट लगने की फिक्र है। फिर उस दिन से वह दोनों अच्छे दोस्त बन गये।
वह धीरे-धीरे बड़ी हो रही थी। दिल से कबीर के ज्यादा करीब होती जा रही थी। अब कबीर को भाई की कमी महसूस नहीं होती थी। वह उसे हर जगह लेकर जाता। वह उसके दोस्तों के साथ भी खेलती। कहने को तो कबीर उससे दस साल बड़ा था पर कबीर की कद काठी थोड़ी छोटी थी। वह अपनी माँ पर पड़ा था। पर रंजू पापा की तरह लम्बी थी। एक अंतर और था उसे हॉकी खेलना बहुत पसंद था। तब कबीर ने पहली बार जाना कि कबीर की माँ अपने स्कूल की हॉकी टीम की कैप्टन थी और प्रदेश स्तर पर विजेता भी।
यह बात तब की है शायद जब कबीर बारहवीं में था और रंजू शाम को हाकी की प्रैक्टिस के लिये जाती थी और कबीर ट्यूशन। शाम को दोनों भाई बहन एक साथ ही वापस आते थे। एक दिन जब वो लोग लौट रहे थे तो कबीर ने देखा चार पाँच लोग एक औरत के साथ बदतमीजी कर रहे हैं। कबीर ने वहां से नजर बचाकर निकलने में ही भलाई समझी। पर रंजू . . . वह वहीं रुक गयी और बोली, "दादा मैं होती तो भी क्या आप एसे ही चले जाते"? कहकर वह अपनी हाकी लेकर भागी। उसको देखकर उसके पीछे कबीर और कबीर के पीछे उसके दोस्त और हाकी प्रैक्टिस के लिए आयी उसकी कुछ सहेलियां भी भागी। इतने लोगों को भागते देख कर आसपास की भीड़ को भी होश आया। वह भी आगे बढ़ी। उन बदमाशों ने इतने लोग को आते देखा तो सब मौके की नजाकत का फायदा उठाकर भाग गए। उस दिन रंजू ने कबीर को एक पाठ पढ़ा दिया कि जब आप सच्चाई का साथ दोगे, बुराई से डरोगे नहीं और आगे बढ़ोगे तो लोग आपका साथ देंगे।
वह आज भी वैसी ही है निर्भीक, साहसी, सच्ची हमेशा गरीबों की निर्बलों की मदद करने वाली। वह आज एक एन जी ओ . चलाती है। कबीर की बेटियां कबीर को सोच में डूबा देखकर उसे हिला हिला कर पूछ रही थी पापा बताइए ना किस की बहन अच्छी है। कबीर ने उन दोनों को किस करते हुए कहा, "ना तुम्हारी, ना तुम्हारी, सबसे प्यारी तो मेरी बहन है, एक हजारों में मेरी बहना है और तुम्हें भी अपनी बुआ जैसा ही बनना है निडर , निर्भीक।"
