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V. Aaradhyaa

Others

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V. Aaradhyaa

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यू आर एम स्टील वन वुमन मैन

यू आर एम स्टील वन वुमन मैन

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" बहु! तुम आज सुबह से मुझे रसोई में क्यों दिखाई दे रही हो? नमैं समझ नहीं पा रही हूं कि तुम रात के तीन बजे तक काम करती रही हो और सुबह फिर अपना काम शुरु कर देती हो। तुम्हें आराम करना है कि नहीं है!"

सीमा जी ने प्रिया को रसोई में देख कर उसे प्यार से डांट लगाई तो...प्रिया ने कहा...


" मम्मी जी! आप भी ना....! आप भी तो जल्दी उठ जाती हैं। मैं आपके लिए ही तो चाय बना रही थी!"


" बेटा! मैं जानती हूं कि तू मेरे लिए ही चाय बना रही थी। लेकिन यह काम मैं खुद भी कर सकती हूँ ना...तू तो वह काम कर...जो मैं नहीं कर सकती"


"मम्मी जी! बहुत जल्दी आप वह काम भी करने लगेंगी, जो आपको लगता है कि आप नहीं कर सकती "


"अच्छा... अच्छा...! खुद तो रात के तीन तीन बजे तक जगकर काम करती है। अब मुझे भी अपने साथ जगाएगी। मुझे यह लत नहीं लगाना भाई...मैं ऐसे ही ठीक हूं!"


सीमा जी ने कहा और तख़्त पर बैठकर चाय की चुस्की लेने लगी।


थोड़ी देर में अविनाश जी जब सैर से वापस आए तो उन्हें यह देखकर बहुत सुखद आश्चर्य हुआ कि... आज सीमा जी के हाथ में अखबार था और वह अखबार पढ़ रही थी।


"क्या बात है...मोहतरमा...आज सुबह-सुबह इतना सुंदर आश्चर्य देख रहा हूं कि...आप अखबार पढ़ रही हैं? कहीं मेरी आंखों ने कुछ गलत तो देख नहीं लिया!"


पति की इस चुहल का सीमा जी ने भी मुस्कुराकर ही जवाब दिया। एक तरह से यह नहले पर दहला ही था...



"जी..मैं अखबार नहीं पढ़ रही थी। बल्कि मैं सोच रही थी कि अब आज के अखबार में इश्तहार दे ही ही दूं कि मेरे पति सुबह से लापता है। अमूमन तौर पर तो एक घंटे में मॉर्निंग वॉक करके आ जाते थे पर आज एक घंटा चार मिनट हो गए हैं!"



सीमा जी के इस मजाक पर अविनाश जी भी हो हो करके हंसने लगे।



पर सभी रसोई से अपने ससुर के लिए चलाती हुई प्रिया को भी दोनों की चुहल पर हंसी आ गई।



उसे बहुत अच्छा लग रहा था कि मम्मी जी भी हंस रही थी और अब ससुर जी भी काफी सामान्य हो चले थे।


अगर एक महीने पहले कोई इन दोनों को देख लेता तो यकीन नहीं कर पाता कि.. ये वही सीमा जी और वही अविनाश जी हैं तो एक महीने पहले जिंदगी से हार मान बैठे थे।



 दरअसल प्रिया और मनीष की शादी को दो साल हो गए थे। दोनों बड़े ही अच्छे से गृहस्थ जीवन जी रहे थे साथ ससुर के साथ पिया का रिश्ता भी लगभग अच्छा ही थ

.

 उन्हीं दिनों कंपनी की तरफ से मनीष को बैंकॉक जाना पड़ा था।और दोस्त दोस्तों के बहकावे में आकर और कुछ रात के नशे में उसने वह कर लिया जो उसे नहीं करना चाहिए था।और सुबह उठकर उसे बहुत पछतावा हो रहा था।

एक तरह से वह जो गर्व से कहा करता था...

"आई एम वन वुमन मैन!"


वह भ्रम तो टूट ही गया था। अब वह प्रिया को क्या मुंह दिखाएगा....?



 बहरहाल घर तो आना ही था और प्रिया का सामना करना ही था।


.

जैसे ही वह घर पहुंचा तो उसका चेहरा देखकर ही प्रिया को कुछ अजीब सा लगा।क्योंकि मनीष उससे आंखें नहीं मिला रहा था।


उसी रात मनीष ने एक विस्फोट किया... जिसने प्रिया के पूरे वजूद को हिला कर रख दिया।


 "प्रिया मुझसे एक बड़ी गलती हो गई। मुझे पता है तुम मुझे माफ नहीं करोगी. इसलिए मैं यह घर छोड़ कर चला जाऊंगा। और तुम अगर चाहोगी तो मम्मी पापा को भी अपने साथ ले जाऊंगा। घर और प्रॉपर्टी के सारे पेपर मैं तुम्हारे नाम कर दूंगा। और तुम जिस दिन चाहोगी हम तलाक ले लेंगे!"


 प्रिया पर एक साथ कई सारे व्रजपात हुए।वह अपने आप को बिल्कुल संभाल नहीं पाई और बेहोश हो गई


 जब होश आया तब प्रिया के पास दो ही रास्ते थे। या तो वह घर छोड़कर चली जाए या फिर मनीष को जाने दे।


 प्रिया ने बहुत सोचा इतने कम समय में ही उसे इस घर से और घर के लोगों से इतना प्यार हो गया था कि वह इस घर के बगैर अपने अस्तित्व की कल्पना भी नहीं कर सकती थी।


उसके सास ससुर उसे माता-पिता की तरह प्यार करते थे और मनीष भी उसके साथ बहुत ही प्यार से पेश आता था।


 पर इतना ही नहीं...खुद प्रिया भी इन सब से इतना जुड़ गई थी कि उसने कभी सोचा भी नहीं था कि वह इस घर को कभी छोड़ सकती है। या मनीष के बिना रहने की कल्पना भी नहीं की थी। उसने तो आज जब मनीष अपनी बात कह रहा था तो प्रिया को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे


 उस दिन प्रिया जब ऑफिस गई तो बहुत बुझी बुझी सी थी। उसकी दोस्त संविदा ने उससे पूछ लिया कि,


" क्या बात है प्रिया! अब तो मनीष आ गया है। तो मैं तो खुश होना चाहिए। लेकिन तुम इतनी उदास क्यों लग रही हो?'


 संविदा की सहानुभूति पाकर प्रिया एकदम रो पड़ी और उसने अपना दिल खोल कर उसके सामने रख दिया।


 प्रिया की बात सुनकर संविदा ने...

यही समझाया कि....

"देख प्रिया आजकल का जो समय है. लॉयल्टी सिर्फ इस बात से नहीं देखी जा सकती है कि मेल या फीमेल सिर्फ एक के साथ फिजिकल रिलेशनशिप रखते हैं। आजकल लॉयल्टी इस बात से भी देखी जा सकती है कि इंसान जब गलती करता है तो... वह उसे स्वीकार करता है कि नहीं। अगर मनीष चाहता तो तुझसे यह बात छुपा भी सकता था। लेकिन मनीष ने यह बात उसे बता दी इसका मतलब है कि वह ईमानदार है और पहली गलती है। माफी मांग रहा है बेहतर तो यही है कि तू कोशिश कर और उसे माफ कर दे!"


" लेकिन अगर वह दोबारा गलती करे तो...? "


प्रिया ने आशंका जताई।


" मैं तुझे गलती माफ करने के लिए कह रही हूं प्रिया! अपराध नहीं!अगर वह दूसरी बार गलती करेगा तो यह एक अपराध होगा तब उसे माफ मत करना और कोशिश करना कि ऐसी कोई नौबत ही नहीं आए कि वह दूसरी गलती करे।


 क्योंकि एक गलती करने के बाद माफी मिल जाती है तो कई बार इंसान दूसरी गलती करने की हिमाकत भी कर जाता है 

 तुम्हें भविष्य में भी थोड़ा सावधान रहना पड़ेगा बाकी मुझे तो यही सही लगता है कि तुम मनीष को एक मौका दे दो!"


 प्रिया ने संविदा की बात पर गौर किया तो उसे लगा कि उसे मनीष को एक मौका और दे देना चाहिए और उसने मनीष को माफ कर दिया।


 कुछ दिन ही ठीक से बीते होंगे कि मनीष फिर बीमार रहने लगा और मुझे डॉक्टर से चेकअप कराया तो उसे उसके पापों की सजा मिल गई थी।


 मैंने तो मनीष को माफ कर दिया था पर शायद भगवान ने मनीष को नहीं माफ किया।और उस दिन एचआईवी पॉजिटिव का रिपोर्ट लेकर वह घर आया।


 मनीष की बीमारी के बारे में जानकर पूरे घर में मातम सा छा गया था।

चुंकि मामला मनीष की असाध्य बीमारी का था। तो प्रिया और मनीष को अपने मम्मी पापा को भी बताना पड़ा कि...

 मनीष को हुआ क्या है...!!


एक तरह से अविनाश जी और विमला जी की तो दुनिया ही लूट गई।


पर यह वक्त तानों उलाहनों का या फिर हिम्मत हारने का नहीं था...


इसलिए प्रिया ने अपने पति का साथ देने और उसका पूरा इलाज करने के लिए कमर कस लिया।


 वैसे वह दुनिया समाज जानती थी और देख चुकी थी कि... ऐसे रोगियों को समाज किस नजर से देखता है।.इससे उन लोगों ने यह बात पास पड़ोसियों रिश्तेदारों से छुपा कर रखा था और मनीष अस्पताल में एडमिट हो गया था। इस बीच मनीष का इलाज चलता रहा और प्रिया घर में भी सब का ध्यान रखती रही।अंदर ही अंदर रोती लेकिन ऊपर से मुस्कुरा कर सास-ससुर को यह दिखाती कि सब कुछ ठीक हो जाएगा।


और... लगभग डेढ़ महीने बाद...


प्रिया ने अपने अथक प्रयास से... और अपनी सेवा और हिम्मत से मनीष को ठीक कर दिया था।


 मनीष जब ठीक होकर अस्पताल से घर आया तो उस घर में उत्सव जैसा माहौल था।


 जब उसका रिपोर्ट एचआईवी पॉजिटिव बताया गया तो उसे खुद से नफरत हो गई थी। उसका मन .कर रहा था किआत्महत्या कर ले। लेकिन प्रिया ने उसके अंदर हिम्मत भरी कि


" मनीष ! आपको जीना होगा। मम्मी पापा के लिए और मेरे लिए।आत्महत्या करना सोचना भी मत।आत्महत्या से अच्छा है कि जिंदगी में लड़ाई करो रोग पर विजय पाओ और आगे बढ़ो आत्महत्या कभी भी किसी भी समस्या का हल नहीं हो सकता..!"


 प्रिया की बात मानकर जब मनीष इलाज कराने लगा और ठीक हो गया तो अब...

उसे धीरे-धीरे फिर से जिंदगी से प्यार होने लगा था।


 मनीष को अपनी पत्नी से भी पहले से भी ज्यादा प्यार हो गया था जिसने उसे ठीक करने की सोच रखी थी और इस कोशिश में उसे जितनी भी मेहनत करनी पड़ी थी वह पीछे नहीं हटी थी।


अपना गम भूल कर प्रिया जिस तरह से अपने सास-ससुर को गम से बाहर लाई थी। यह बहुत मुश्किल ही नहीं बल्कि एक तरह से असंभव काम था।


उसकी इस सारे उतार-चढ़ाव में मनीष ने उसका पूरा साथ दिया था। अभी मनीष उसके साथ नहीं था तो क्या लेकिन वह हर समय उससे जुड़ा रहा था।


सीमा जी और अविनाश जी के मन में भी एक विश्वास था कि सब कुछ ठीक हो जाएगा और उसके विश्वास को हर दिन और पुख्ता करती रही थी प्रिया।

 अब मनीष वापस आ गया था और घर में खुशियां धीरे-धीरे लौट रही थी।


अब अमावस की काली रात ढलने को थी और सूरज की लालिमा चुपके से खिड़की से अंदर आने को ही थी …!!!

प्रिया का विश्वास जीत गया था।


एक पत्नी जो पति पर विश्वास करती है तो... फिर पति हर दौर से बाहर निकल आता है।

पति पत्नी का रिश्ता ही ऐसा होता है कि एक दूसरे का साथ देकर और पूर्ण रूप से गुण और दोष के साथ अपनाने के बाद ही रिश्ता गहरा हो जाता है।

एक दिन मनीष ने भावुक होकर पिया का हाथ थाम कर कहा कि,


"मैंने तुमसे बेवफाई की है प्रिया ! मैं अब वन वुमन मैन नहीं रह गया हूं। मैं अपने किए पर हमेशा शर्मिंदा रहता हूं!"


 तो तू या नहीं उसके हाथ को जोर से पकड़ कर कहा तुमने अपनी गलती मान ली मनीष और अपना इलाज करा कर दोबारा स्वस्थ होकर आया हो तो यह समझ लो कि तुम्हें एक नई जिंदगी मिली है इस नई जिंदगी हम किसी नकारात्मक बात को जगह नहीं देंगे।


 और मेरी नजर में तो....


यू आर स्टील वन वुमन मैन!!

 पर हां आगे कोई ऐसी गलती करोगे तो मैं माफ नहीं करूंगी याद रखना!"

 प्रिया ने प्यार से कहा तो मनीष ने कहा,


"मैं अब कभी ऐसा गलती करने का सोच भी नहीं सकता!"


 "तो...

अब तुम जिंदगी का स्वागत करो मनीष!

खुलकर जिंदगी जियो। तुमने गलती मान ली गलती सुधार लिया। सबसे बड़ी बात है।


 गलती सबसे होती है मनीष! लेकिन जो गलती मान लेता है और गलती सुधार लेता है..


वह सबसे सच्चा इंसान होता है सच्चा इंसान होता है।और ऐसे सच इंसान को मैं कभी नहीं छोड़ सकती!"

 प्रिया का विश्वास देखकर मनीष मन में अपना पक्का वादा कर चुका था क्या वह कभी प्रिया का विश्वास नहीं तोड़ेगा और ना ही उसका कभी दिल दुखाएगा।


 जिस तरह प्रिया ने मनीष पर अपना विश्वास रखा और उसका साथ दिया।


उस तरह ही अगर पत्नियां दोषारोपण करने की जगह अगर पति का साथ दें तो शादी जैसी संस्था और शादी पर लोगों का विश्वास और बढ़ेगा और परिवार टूटेगा नहीं।


 वैसे मनीष की गलती अक्षम्य है।लेकिन प्रिया ने यहां आगे बढ़ कर उसकी गलती माफ कर दी। क्योंकि उसने गलती स्वीकार कर लिया था।


 लोगों को यहां प्रिया मूर्ख लग सकती है लेकिन अगर वह मनीष को गलती की सजा यह देती कि उसे अपनी जिंदगी से निकाल देती या प्रिया घर छोड़कर चली जाती तो फिर तो दोनों ही अकेले हो जाते।


 कभी-कभी यह जिंदगी में अपनों को अपने से अलग करने की बजाय उन्हें सुधार कर साथ रखने में ही समझदारी होती है।


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