वो toxic नहीं है
वो toxic नहीं है
"एक बात कहे देती हूँ दीदी, इन दोनों का प्यार तो मुझे बिल्कुल समझ में नहीं आता। और ऐसा प्यार एक दूसरे के लिए भलाई की जगह टॉक्सिक हो जाता है!"
नताशा ने कहा तो... आशा को भी गुस्सा आ गया और वह चिल्ला पड़ी।
" चंदना ... चंदना ...कहां हो ...? मेहंदी लगाने वाली आ गई है । जरा जल्दी मेहंदी लगवा लो, और हां....उसके पहले एक बार शादी का लहंगा भी ट्राई कर लो। क्योंकि मेहंदी लगने के बाद शाम तक ट्राई नहीं कर पाओगी। अभी निर्मला खड़ी है हाथ के हाथ उसे टाइट हिला जो भी करना होगा कर देगी बाद में वह भी व्यस्त हो जाएगी!"
चंदना को आवाज देकर जब आशा जी थोड़ा थक गई तो सामने रखे तख़्त पर बैठकर अपने छोटे बेटे अंशु को बोलीं ,
" जा...बेटा...जरा ढूंढ कर अपने चंदना बुआ को लेकर आ । क्या करूँ ...इस लड़की को तो बुला बुला कर मैं थक गई हूं। इसे तो समझ में ही नहीं आता है कि... शादी का घर है, सब काम पड़े रहते हैं। ऐसे में इसे आगे बढ़कर कुछ तो जिम्मेदारी निभानी चाहिए। लेकिन इसे तो जैसे अपनी शादी से कोई मतलब ही नहीं है !"
इसे जरा होश भी तो हो कि शादी का घर है। सब बिखरा पड़ा है...लेकिन होनेवाली दुल्हन का पता ही नहीं..!"
" सही कह रही हो जीजी ! आपकी भांजी के यह लक्षण तो हमें समझ में नहीं आते। एक तो आपने और जीजा जी ने मिलकर उन दोनों बहनों का पूरा भार लिया हुआ है। ऊपर से उनके नखरे ही खत्म नहीं होते!"
आशा की छोटी बहन नताशा मुंह बना कर बोली।
वह चंदना की हमउम्र थी। और वैसे भी उन दोनों बहनों से बहुत चिढ़ती थी। क्योंकि जब से दोनों बहन इस घर में आई थी तबसे नताशा पहले की तरह इस घर में अपना अधिकार नहीं जमा पाती थी। इन दोनों की वजह से उसका इस घर में आना-जाना भी कम हो गया था।
वरना तो ... अपनी दीदी के ससुराल उसका आना-जाना भी खूब था। और दीदी के सास ससुर भी उसे प्यार करते थे। लेकिन जब से उनकी अपनी नातिन आ गई थीं। तबसे उन्होंने नताशा पर ध्यान देना भी कम कर दिया था।
दरअसल...
दीनानाथ जी और शकुंतला जी के घर में बेटे सुरेश के बाद जब बेटी पैदा हुई तो सब बहुत खुश हुए थे। मां ने मां ने बड़े प्यार से अपनी बेटी का नाम रखा था ... नंदिनी।
नंदिनी की दो बेटियां थी चंदना और कुंदना ।
नंदिनी और उसके पति अमन अपनी दोनों बच्चियों को बहुत प्यार करते थे। बड़ा खुशहाल परिवार था। लेकिन पता नहीं .... किसकी नजर लग गई। एक रोड एक्सीडेंट में नंदिनी और अमन दोनों की मृत्यु हो गई।और उसके ससुराल में कोई बच्चियों की ज़िम्मेदारी लेने लायक नहीं था। क्योंकि बच्चियों के दादा-दादी का देहांत हो चुका था और उनके चाचा विदेश में थे। इसलिए बच्चियों की जिम्मेदारी उनके नाना नानी ने आगे बढ़कर ले ली थी।
और ... यह बात घर की बहू आशा को तो बिल्कुल पसंद नहीं आई थी… लेकिन वह कर ही क्या सकती थी ?
जब चंदना और कुंदना के माता-पिता का देहांत हुआ, उस समय चंदना बारहवीं में थी और कुंदना पांचवी में। दोनों बहनों की उम्र में लगभग आठ साल का फर्क था। माता पिता के गुजर जाने के बाद चंदना अचानक बहुत समझदार और जिम्मेदार हो गई थी और कौन बना के लिए एक तरफ से वही माता-पिता दोनों बन गई थी।
वैसे तो घर में नाना नानी मामा मामी सब थे, लेकिन... नाना नानी की अब उमर हो चली थी। दोनों जब साथ में थे तो,बच्चियों को देख लेते थे अचानक नाना की गति रुक जाने से मृत्यु हो गई थी तो इधर नानी और भी कमजोर हो गई थी। एक तरह से अब दोनों बच्चियां अनाथ जैसी हो गई थी। और मामा व्यस्त रहते थे। मामी का तनाव भरा चेहरा देखकर कल चंदना घर के काम में भी हाथ बढ़ाने लगी थी और अपनी और अपनी बहन के सारे काम भी खुद ही करने लगी थी जैसे कपड़े धोना आयरन करना छोटी बहन के बाल बनाना, उसे पढ़ाना,उसके साथ सोना उसके साथ जागना।
कहते हैँ .... दुख इंसान को बहुत करीब ले आता है और एक दूसरे से बांध देता है।
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दोनों बहने जब अकेली हो गई तो और भी करीब आ गई थी। चंदना ने कुंदना के लिए उसके माता-पिता दोनों की जगह ले ली थी। और कुंदना अब हर चीज के लिए चंदना पर निर्भर हो गई थी।
कुंदना के सारे काम वह खुद करती और अपने भी काम खुद कर लिया करती थी।
यहां तक तो ठीक था। कॉलेज की पढ़ाई के बाद ज़ब चंदना ने नौकरी करना चाहा और नानी से कहा भी कि...
"नानी ! मैं पढ़ लिखकर नौकरी करना चाहती हूं! "
क्योंकि ... वह यह देख रही थी कि ...
मामी की नाराज़गी की वजह से अब मामा भी काफ़ी बदल गए थे। और ... नानी के गुजर जाने के बाद नानी भी आधी जान की रह गई थी। उनसे क्या ही होता ...!
इसलिए ... चंदना चाहती थी कि...
नौकरी करके वह अपनी बहन को अपने साथ रखे। और उसे पढ़ाए लिखाए। कम से कम दोनों बहन सुकून से इज्जत और मान सम्मान के साथ तो रह पाएंगी!
लेकिन...
चंदना से यह गलती हो गई कि यह बात उसने नाना, नानी और मामा, मामी के सामने ही कह दिया।
बस मामी बिफर पड़ी और बोली,"यह सब इस घर में नहीं चलेगा और तुम्हारी पढ़ाई बहुत हो चुकी है, शादी की उम्र भी हो चुकी है। तो पहले तुम्हारी शादी करा दें। फिर बाद में कुंदना के बड़े होने पर उसकी भी शादी कराकर हम भी इस जिम्मेदारी से मुक्ति चाहते हैं।
आखिर हमारा भी घर परिवार है। हमें भी अपने बच्चों को बड़ा करके उनका भी भविष्य बनाना है!"
कुछ समय नानी और मामा भी चुप थे इसलिए चंदना और कुछ नहीं बोलकर बिल्कुल चुप रह गई थी। और भी बहुत कुछ जानती थी लेकिन बोलकर कोई फायदा नहीं था यह भी जानती थी कि... उसकी मां की साड़ी और गहने भी मामी ने ही हड़प ली है और पापा की एलआईसी , पी. एफ. वगैरह पर जितने भी पैसे निकले थे सब मामा ने अपने अकाउंट में ही तो रखे हैं। लेकिन वह बेचारी क्या कहती...?
एक बार नानी ने यह बात उठाई थी तो मामी ने हाथ नचाकर कह दिया था ...
" और जो हमें दोनों बच्चियों को खिला पिला रहे हैं पढ़ा लिखा रहे हैं, पढ़ा लिखा रहे हैँ । वह सारा खर्च कहां से आएगा...? हम कोई धन्ना सेठ तो है नहीं। दीदी और जीजाजी के पैसे थे ही कितने....? जितने थे सब इनकी पढ़ाई में लग गए। अब इन लड़कियों की शादी भी होनी है। आखिर हम कहां तक करें!"
उसके बाद नानी भी चुप रह गई थी। वह किस बल पर बोलती....?
वह तो खुद ही अपने बेटे बहू पर आश्रिता थीं। अगर वह ज्यादा बोलते तो शायद कुंधना और चंदना पर अत्याचार बढ़ जाता।
इसलिए जब उसकी मामी दीपेश का रिश्ता लेकर आई थी तो चंदना कुछ नहीं बोली।
देखने में अच्छी भली थी चंदना। पढ़ी-लिखी भी थी। इसलिए दीपेश और उसके घरवालों को बहुत पसंद आई थी जब एकांत में उसे दीपेश से बात करने के लिए दिया गया तो चंदना ने अपनी चिंता हल्के शब्दों में बयान कर दी थी कि ...
" दीपेश जी! मैं अभी शादी नहीं करना चाहती। कृपया आप इस शादी से इंकार कर दीजिए!"
" क्यूँ....? क्या आपको मैं पसंद नहीं हूं...? या फिर आप किसी और से प्यार करती हैँ...? "
दीपेश ने पूछा तो चंदना ने अपने मन की बात कह दी।
"मुझे अपनी बहन की चिंता है कि मेरी बात बहुत अकेली हो जाएगी!"
"बस....इतनी सी बात....!
मैं आपकी बात समझता हूं हम जीवन साथी बनने जा रहे हैं अगर हम एक दूसरे की समस्या नहीं समझेंगे, एक दूसरे के मन: स्थिति नहीं समझेंगे तो हमारे साथ रहने का मतलब... सिर्फ समझौता होगा... शादी नहीं। आपका मन कुंदना में लगा रहेगा तो आप वहां भी खुश नहीं रह पाएंगी!"
" नहीं... नहीं...
मैं हमेशा चंदना के बारे में नहीं सोचूँगी।और मैं उस घर को अपनाने की भी कोशिश करूंगी। लेकिन मैं अभी शादी नहीं करना चाहती।मैं अपने पैरों पर खड़े होकर कुंदना को भी अच्छे से पढ़ाना दिखाना चाहती हूं। उस घर में शायद मेरे जाने के बाद वह बहुत अकेली हो जाएगी और पढ़ाई लिखाई भी ठीक से नहीं कर पाएगी। इसलिए मैं अभी शादी नहीं करना चाहती हूं!"
कुंदना ने अपनी बात स्पष्ट तरीके से कह दी।
सुनकर दीपेश ने मुस्कुरा कर कहा....
"आप इसकी फ़िक्र मत कीजिये। मुझे आप और आपकी स्पष्टवादिता बहुत पसंद आई। मैं आपसे शादी करना चाहती हूँ। ....तो शादी के बाद आप कुंदना को हमारे साथ रख सकती हैँ!"
सुनकर चंदना को यकीन नहीं आया। उसने भावावेश में दीपेश को धन्यवाद कहा और आकर सबसे पहले अपनी छोटी बहन को गले लगा लिया।
आज.... दोनों बहन बहुत खुश थीं। चंदना की चिंता हट गई थी इसलिए ... अब वह शादी की तैयारी में बहुत खुश थी। और कुंदना को भी पता था कि ... अब उसकी छुटकी अकेली नहीं रहेगी और ना ही कोई उसे टॉक्सिक कहेगा।
अब चंदना खुशी-खुशी शादी के लिए तैयार थी। और कुंदना भी अपने दीदी के शादी में बहुत खुश थी , इसलिए आगे बढ़कर सभी रस्मों में हिस्सा ले रही थी।
आखिर... चंदना को मन के मीत जैसा जीवनसाथी जो मिल क्या था। अब उसे यह चिंता नहीं रहेगी कि ....
मेरी शादी के बाद छुटकी अकेली हो जाएगी।
वह तो घर नए घर में जाने की तैयारी के साथ-साथ अपनी छोटी बहन को भी समझा रही थी कि, वहां कैसे रहना है।
सच... दीपेश जैसा जीवनसाथी पाकर चंदना खुश थी बहुत खुश....!!
