संघी या मय या घृणा से
संघी या मय या घृणा से
संघी या मय या घृणा से
संघी या मय या घृणा से
नहीं आता है लोकतंत्र, नहीं आते हैं अच्छे दिन
और यक़ीनन, नहीं आती है न समाज में समानता
फिर वह स्वतंत्रता आऐगी कहाँ से, जिसके पैरों में घुँघरू
मिट्टी के घड़ों की माणा में क़ैद जो
एक दिन सभी जाने की चिंता में पुकार जो अपने पैरों पर खड़े होने की एक
अकेली हिम्मत जो
रोटी में शामिल नमक जो
पानी में प्राण जो
नहीं आता है लोकतंत्र, नहीं आते हैं अच्छे दिन
और यक़ीनन, नहीं आती है समाज में समानता
संघी या मय या घृणा से