एक और दृश्य
एक और दृश्य
एक और दृश्य
ह्त्या से पहले नृत्य
और नृत्य से पहले हत्या की कार्रवाई
आख़िर यही तो नहीं हो रहा है कहीं इन दिनों
हमारी अपनी ही सांस्कृतिक-संस्थाओं में
क्या कुछ अलग
क्या कुछ अलग
हत्या से पहले या हत्या के बाद?
मुझे सूझता ही नहीं है वह नृत्य
जो बुझता ही नहीं है वह हत्या
मैं नहीं कभी भी किसी भी हत्या के पक्ष में
मैं नहीं कभी भी किसी भी ऐसे ही नृत्य के पक्ष में
जो नृत्य हत्या के पक्ष में
हत्या मेरी ही नहीं, हो ही सकती है किसी की भी
कोई भी हत्या, विषय नहीं हो सकता है नृत्य
नृत्य नहीं है विषय
विषय है कविता में कविता का
तो सिर्फ है हत्या ही
किसने किया, किसने सुना, किसने भूला
ज़रूरी नहीं है इस संदर्भ की तमाम बहस
पकड़ो उसे,
वह जो भाग रहा है बदल-बदल कर भेष
पकड़ो उसे,
वह जो भाग रहा है बदल-बदल कर भाषा
पकड़ो उसे,
वह जो भाग रहा है बदल-बदल कर भूषा
या तो आप देख नहीं पा रहे हैं उसे
या कि फिर चुंघियां गई हैं आँखें आपकी
या कि हो गई है हत्याएं सहने की आदत
आख़िर यही तो नहीं हो रहा है कहीं इन दिनों
हमारी अपनी ही सांस्कृतिक-संस्थाओं में
नृत्य से पहले हत्या की कार्रवाई
और हत्या से पहले नृत्य
जैसे हमारी भाषाई-संसद का ही कोई
एक और दृश्य