आज के इस मोड़ पे ज़िन्दगी के
आज के इस मोड़ पे ज़िन्दगी के
मशरूफ़ थी ज़िन्दगी ओैर हम बेपरवाह,
जब ज़िन्दगी ने कुछ बेरुख़ी दिखाई हम हो गए इससे खफा।
ज़िन्दगी के जवाब ने हमें बेज़ुबान कर दिया
जब सब जागे हम सोये जब सब सोये तब भी हम सोये।
अब हमसे उठके गिला करने चला,
मशरूफ़ियाते ज़िन्दगी मे हम न थे बेपरवाह
पर जब आया ज़िम्मेदारी का बोझ हमे लगा हम थे जी रहे खुद के लिए सदा
पर ए ज़िन्दगी हम तुझसे नहीं है खफा
तेरे चलन का तो हमें है तजुरबा
इसलिए जीतें है अब हम बिना करे शिक़वा गिला।
ए ज़िन्दगी तुझे फिर गले लगा लेंगे जो रूठे है उन्हें फिर मना लेंगे
पर इस दौरान मेरी सांस का क्या भरोसा
कहीं निकल न जाये दम, इतना हमें तूने जकड़ा,
ज़िन्दगी फिर हम पर मुस्कुराई कहने लगी ना कर जकड़ की परवाह
जब माँ अपने लाल को गले लगाती है
उसे खुद से ज्यादा अपने संतान की होती है परवाह,
ज़िन्दगी तुझसे हम भला कब जीत पाये हम जीते रहे यूँही पर तुझे तो बस सताए
फिकर हमारी यही तुझसे हमने ज़िन्दगी के सफर में सीखा।