प्यासी रूह
प्यासी रूह
देखती हूँ जब प्रेमरत जोड़े को गोष्ठी में लीन तब,
बहुत कुछ अनकहा दिल को कचोटता है
लो आज कसमसाते कंजर लम्हों को साक्षी मानकर कहती हूँ..!
हाँ कंजर लम्हें जो मेरी ज़िंदगी में हसीन पलों को लाने में सुस्त रहें..!
एक बस तेरी चाहत की प्यासी रूह सदियों से भटकते दर ब दर
तेरी चौखट पे आकर दम तोड़ देती है हर जन्म..!
दे दो दान में अपने कुछ अहसास अंजूरी भर तो मोक्ष मिले
इस मोहांध तन को अस्थियों को दफ़ना कर मिट्टी ड़ाल देना अपने आँगन में..!
और एक तुलसी का पौधा बो देना उस मिट्टी की परत पर,
बस महका करुंगी तुम्हें अपने करीब से आते जाते देखकर..!
कहो ना होंगी मेरी इतनी सी आस पूरी,
या यूँ ही भटकते बिताने है कई और जन्म।