होली की स्मृतियां
होली की स्मृतियां
वो त्यौहार बड़ा था रंगीन,
जिसमे होली की थी उमंग,
जिसमें पिचकारी से भरते रंग,
उड़ेलते थे मित्रो के संग।
वो गुजियों का होली पर खाना,
वो मम्मी का लजीज पकवान बनाना,
होली पर मन नहीं करता था नहाना,
वो एक बार नहाकर फिर से रंगना,
वो टैंकर से फिर आता था पानी ,
आफत हो गयी थी रंग ना,
निकलते याद आ जाती थी नानी,
वो मस्ती के बचपन के दिन
और क्या थी वो होली,
रिश्तों की डोर से
बढ़ती थी हमजोली,
फिर जो होता था भांगड़ा पंजाबी,
जिसे देख मन की उत्सुकता बढ़ जाती,
अजब-गजब था वो त्यौहार
जिसे न था मन में कोई
भी दुर्व्यवहार,
हर कोई मिलता गले हर्ष से,
बधाइयां भी मिलती थी दिल से,
सब मिलकर रहते थे संग में,
रिश्तों के बुनियादी ढंग में।