माँ का प्रसव पीढ़ा का दर्द
माँ का प्रसव पीढ़ा का दर्द
महिला के प्रसव पीड़ा
के दर्द को एक महिला
ही अच्छे से जानती है
इतना दुख दर्द सहने
के बाद भी माँ बनती है
प्रसव पीड़ा का वह
दर्द भी सहती हैं
असहनीय दर्द पीड़ा
वह कैसे सहती है
जीवन और मृत्यु
के बीच लड़ती है
जीवन तो ज़रूर मिलता है
जब प्रसव पीड़ा के
बाद बच्चा पैदा होता है
बच्चे के साथ माँ का
दूसरा जन्म होता है
असहनीय दुख
दर्द सहती है
तभी तो माँ होकर
वन्दनीय बनती हैं
एक माँ होने का
सम्मान पाती हैं
माँ शब्द कितना
प्रशंसनीय वंदनीय
आदरणीय सम्मानीय होता है
जो असीम दुख दर्द
झेलने के बाद पैदा
हुए बच्चे से मिलता है
बच्चा पैदा हौते ही
माँ-माँ कहकर रोता है
अपना दर्द बयाँ करता है
बच्चे के रोने की
आवाज़ से माँ अपनी
असहनीय पीड़ा
दुख दर्द भूल जाती हैं
बच्चे को हाथो से उठाकर कलेजे से लगाती हैं
कलेजे के टुकड़े को पुचकारती हैं दुलारती हैं
ममता प्यार से आंचल मे छुपाती हैं
कुछ समय पहले हुए असहनीय
दुख दर्द को भूल जाती हैं
बच्चे को असीमित प्यार करती हैं
पुत्र हैं या पुत्री इसका भेद-भाव नहीं करती हैं
बस अपने माँ होने
का फ़र्ज़ निभाती हैं
बच्चा पैदा होते ही रोता है
बस रोता है
बस माँ-माँ का
सम्बोधन करता है
कवि अनन्त ने इस
दर्द को सुना है
अपनी कल्पना से
दर्दनीय सुन्दर
शब्दों में बयाँ किया है।
एक माँ वो भी हैं
जगत जननी हैं
शेरो वाली हैं कष्टों
को हरने वाली हैं
राक्षसो दुष्टों का नाश
करने वाली हैं
दुर्गा हैं काली हैं
माँ शेरो वाली हैं।