बचपन की गर्मी
बचपन की गर्मी
बचपन की गर्मी
बहुत ही निराली थी
खेत और खलियान
से होकर गुज़रती थी
अप्रैल बीता खेतों में
फसल की कटाई में
मई बीती खलियानों
करते गहाई
गेंहूँ, चना, मसूर की
फसल हो बैलों से
करते थे पूरी गहाई
बैलों के संग गोल
घूमा करते थे
सुबह से रात तक
ये काम करते थे
हवा के रूख से
उढावनी करते
मशीन मिल जाये
उससे भी करते
लगे धूप चाहे
कितनी भी सिर पर
पेड़ों की छाया में
कुछ बिताते बैठकर
सुबह नाश्ते में
गुड सत्तू खाते थे
दोपहर खाना खाकर
पेड़ों की छाँव में
खटिया डाल सोते थे
एक माह ऐसे
गर्मी निकलती थी
पेड़ों की छाँव ही
अच्छी लगती थी
कूलर न पंखा न
ए.सी न वहाँ था
गाँव मे बिजली का
नहीं कुछ पता था
वो दिन थे हमारे
बचपन के ऐसे
पड़े चाहे गर्मी
जितनी भी जैसे
पेड़ों की छाँव में
दिन गुज़रते थे
रातें गुज़रती थी
आँगन में सोते थे
बचपन की गर्मी
ऐसे बिताई थी
सोते थे जब भी
मस्त नींद आती थी
हवा जब ठंडी
बदन को जो छूती थी।
भोर तो सुहानी
मस्त मस्त लगती थी।