खबर ही नहीं
खबर ही नहीं
है दर्द क्या, एहसास क्या
क्या खो दिया, है पास क्या
क्या दोस्ती, क्या है दुश्मनी
खबर ही नहीं
क्यूँ आये हैं इस जहान में
क्या फ़र्क़ आम, महान में
क्या पा लिया, क्या है कमी
खबर ही नहीं
फ़ितरत है, या है आदतें
क्यूँ खुद को खुद से है बांधते
क्या हमारी मंज़िल है, यह हम ही क्यूँ नहीं जानते
अपनी ख़ुशी अपने गम की
खबर ही नहीं
चलते हैं तन्हा, अपनी राह में
पल दो पल, सुकून की चाह में
साथ हर पल है चाहते
जो साथ है उसकी
खबर ही नहीं
मुकाम अधूरे हैं किसी के बिन
जीत अधूरी है किसी के बिन
अपनी जीत और अपनी हार की
अपने जश्न, अपने त्यौहार की
इस युग की, इस संसार की
इक तेरी ख़ुशी के बिन
खबर ही नहीं