मेरा प्रेम पटाखा
मेरा प्रेम पटाखा
मेरा प्रेम पटाखा
कोई एक दियासलाई
सुलगाती है मुझे
और मैं भावनाओं से भरा
सुलग जाता हूं
शायद सुलग ही जाता हूं
सुखी जंगली घास जैसे
मुझे सुलगाओ मत
मुझे धधकओ भी मत
मुझे धमको भी मत
मैं वही हूं जो मुझमें तुम की तरह
मैं वही हूं जो तुम में मुझ की तरह
और ये वही है और शायद सही-सही भी
कि जो हमारी नीँद में आता है पहले-पहल
किंतु जो फिर सीधे-सीधे हमारी
रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में चला ही आता है
लहराते हुए निज प्रेम-पताकाएं
प्रेम-पताकाएं सुलगाती हैं मुझे
सुलगा ही रही हैं सदियों से ये वे प्रेम-पताकाएं
जो कटी-फटी हैं, रंगहीन भी और बदरंग भी
इसी बीच तमाम जड़ताओं के रहते हुए जारी
मैं लौटता हूं बेरंग और रंगहीन भी
फिर-फिर आग
फिर-फिर पलाश
फिर-फिर हवन
और यहां-यहां तक कि हवनकुंड में
इच्छा अनिच्छा को रौंदते हुए आ रही
किसी एक सद्इच्छा के पालन में प्रेम-पताकाएं तमाम
मेरा प्रेम पटाखा