पत्नी प्रेम
पत्नी प्रेम
अजी सुनते हैं,
मेरे खिसियाने से काहे आप इतना डरते हैं?
ये दिल पे अपने कौन सा साबुन लगा मचलते हो,
कि चलते तो थोड़ा कम हो ,ज्यादा फिसलते हो?
किस किस की नज़र को हम देखें,
हम सबकी नज़र में रहते हैं,
किस्मत ही ऐसी पाई है,
हर वक़्त सफर में रहते हैं।
ख्वाहिशों की ख़ाक में जल जाते है,
दोस्त मेरे दिल में जो आज आते है।
कुछ इस तरह से रिश्ते बदलने लगे,
मिलते तो हैं अब भी, संभल जाते हैं।
गाँव में घर नहीं और शहरों पे जिंदा है,
उड़ता बिन पर के ये कैसा परिंदा है?
लड़ के जाने मरते क्यों मजहबों के दूत हैं,
ये हिन्दू , मुसलमाँ इन्सां के ही तो रूप हैं।
परछाइयाँ कुछ और नहीं धूप बदलती हुई,
जानते तो सब हैं फिर न जाने क्यों चुप हैं?
पता नहीं किस शहर का,
अजीब वो बाशिंदा है,
कि हकीक़त से घायल,
ख्वाबों पे जिंदा है।
धीर हूँ पथिक चल हूँ तू गाई,
मंज़िल मिलत ना कबहूँ अगुताई।
अदा भी सनम के क्या खूब है, खुद मेरे,
लेके दिल पूछते हैं, क्या दिल से चाहता हूँ,
जो दिल ही दे दिया है, तो दिल की इस बात को,
दिल से जताऊँ कैसे कि दिल से चाहता हूँ।
अपनों पूत कवि करत बड़ाई,
पबजी खेलत कबहुँ ना अगुताई।
किस बात से रोते हो, किस बात का ग़म है?
शर्माजी खिसियाते बोले, ग़म मेरी बेगम है.
सखी तुम क्या जानो पीर पराई,
खुशी मिले ना बिन पति धमकाई।
आदमी तो ठीक था, खराबी फ़क़त इतनी थी,
ना सिखाई किसी ने कारिगरी, न हमें सीखनी थी।
मेरी सांसें, मेरी धड़कन, मेरी रूह तक उधार है,
ख़ुदा तेरा आभार है, ख़ुदा तेरा आभार है।
माँ के बिना जीवन संभव नहीं,
और बीबी के बिना असंभव।
ना तो कोई आग ना तो तेरा कोई ख़्वाब हूँ,
आँधी में जलता हुआ मगर एक चिराग हूँ।
ज़ुबानों के थोड़े फ़सादी हुए क्या,
कहने लगे लोग जेहादी हुए क्या ?