अजीबियत
अजीबियत
बहुत मशगूल हो गए हो कामों में,
कभी खुद के लिए भी वक़्त उगाया करो।
घर की दीवारें ढहने लगी हैं फिर,
साल दो साल में गाँव भी जाया करो।
तहज़ीब दुकानों में बिकती नहीं,
बच्चों को कभी अपने साथ ही घुमाया करो।
कारोबार में पिसकर मशीन हो गए हो,
दोस्त गर आवाज़ दें तो ठहर जाया करो।
कहाँ गुम रहे अजीबियत में सदियों तलक,
ज़िन्दगी पूछती है, कुछ तो फरमाया करो।
खिलौने भूलकर मोबाइल खरीद लाते हो,
बचपन को ठग रहे हो, कुछ तो शरमाया करो।
पड़ोस जलता रहा और तुम सोते रहे,
गर इंसान हो, तो कुछ तो घबराया करो।
मंदिर-मस्जिद जाने से कुछ नहीं होगा,
सुकून चाहिए, तो दो पल यूँ ही मुस्कुराया करो।