चैन से मर जाने दो
चैन से मर जाने दो
ललाट पर लिए चला चिन्ताओं भरी चंद लकीरें
अपने ही हुक्मरानों ने बांधी मेरे पांवों में जंजीरें
जिसमें जन्म मिला वो घरौंदा बड़ा याद आ रहा
उसको देखने की लगन में कदम बढ़ाए जा रहा
फिर से मिल जाए मुझे वो पेड़ की शीतल छाँव
कुछ भी करके पहुंच जाऊं मैं अपने प्यारे गाँव
भूखा प्यासा बदहाल मैं निरन्तर चलता जा रहा
कब पहुंचूंगा यही सोचकर आंसू बहाए जा रहा
आज मुझे कोई ना रोको अपने घर तो जाने दो
अपने गाँव में पहुंचकर मुझे चैन से मर जाने दो!