हरियाली तीज
हरियाली तीज
वे स्त्रियाँ,जो नही जानतीं
क्या होता है वाटर पार्क का मज़ा
जिन्होंने कभी नही देखे मल्टीप्लेक्स
न ही मॉल में रखे क़दम कभी
वे स्त्रियाँ और बच्चियाँ जो
घिरी रहीं गोबर और कीचड़ के घेरों के बीच
उनकी सुबह जो चूल्हे की धूंआती चाय से शुरू होके
दिन भर कमर तोड़ मेहनत से गुज़रती हुई
शाम के धुंधलके में समाती गई
उनके लिए तो ये हरियाली तीज
ये झूलों की पींगें
आमोद प्रमोद की
मधुर बांसुरी है
ये वे ही शापित अहिल्यायें हैं
जो सावन की फुहारों में भीग
पत्थर से नारियों में बदल जाती हैं।
आता है भैया लिवाने तो खिल उठती हैं
तुरन्त रचाने बैठ जाती हैं
महावर बरसों से बिछुड़ी सखियों से मिलने की आस
सूखी त्वचा को भी कोमल बना देती है
भावज की मनुहार माता की ममता
पिता का माथे पे रखे काँपते हाथ से
बरसता दुलार
साल भर के जीने का हौसला सौगात में मिला मानो
फुदकती हैं आँगन में
तो गौरैया सी चहचहाहट बिखर जाती है
कैसे कह दूँ कि मेरे लिए नही हैं मायने
इन तीज त्यौहारों के
सखी सुनो,ये नही गईं कभी युनिवरसिटी
इन्होंने नही पढ़े रिसर्च पेपर
ये कभी नही देखेंगीं होलीवुड मूवी
ये नही जान पायेंगी कि चाँद
उपग्रह है पृथ्वी का
इनके लिए तो ये मेले ठेले
ये पर्व उपवास
मिलने जुलने और साधन हैं
आमोद प्रमोद के
इनकी होठों की सहज मुस्कान
जीने देते हैं इन्हें
खुल के खुली हवा में
चन्द रोज़ ही सही
जी तो लेती हैं
सिर्फ अपने लिए बहाना कोई भी हो।।