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shobha jadhav

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shobha jadhav

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मृदंग पाऊस सरी

मृदंग पाऊस सरी

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मृदंग पाऊस सरी 

मन माझं वेड करी 

थेंब मोतियाचा परी 

झेलते ओंजळीवरी...!


चिंबचिंब पावसात 

भिजे पाखरे रानात 

ढग ढोल वाजवत 

नक्षी विजांची नभात...!


हिरवा शालू लेऊन 

दिसे धरती खुलून 

झाडवेली बहरून 

फुले ,फुलकळी ,पान...!


गंध हा ओल्या मातीचा 

धुंद फुलोरा मनाचा 

वारा बेभान जोराचा 

देई गारवा सुखाचा...!


मयूरपंख फुलत 

नाचतो मोर रानात 

सप्तरंग उधळत 

इंद्रधनू चमकत ...!


नभ पांघरुनी मन 

जाई शिंपीत चांदणं

श्रावणसरी झेलून 

हसे उगी शहारून...!


भिजत हिरवं रान 

ओलं चिंब होई मन 

या थेंबांत विसावून 

जा जगास विसरून...!


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