ये भी हत्या
ये भी हत्या
बच्चे अक्सर खेल खेल में कई ऐसे सवाल पूछ लेते हैं जो हमें सोचने पर मजबूर कर देते हैं। आज दोपहर खेलते खेलते आठ साल के मेरे बेटे ने मुझसे सवाल किया, "जब कोई किसी मनुष्य की हत्या करे तो उसे पुलिस पकड़ लेती है और जेल जाना पड़ता है। मगर अगर हम किसी और जीव की हत्या करें तो कोई जेल नहीं होती, ऐसा क्यों? सभी जीव ही तो हैं?" ये कहकर वह अपने खेल में मगन हो गया। मगर उसकी बात ने मुझे सोच में डाल दिया। इस तरह की सोच और सवाल बच्चे ही कर सकते हैं। हम शायद बड़े होने तक बच्चों जैसी मासूम सोच और सवाल करने की क्षमता खो देते हैं, आसपास देखी सुनी बातों को सच मान कर शायद अपने आँख कान बंद कर लेते हैं।
हत्या तो हत्या है चाहे वो जीवित मनुष्य की हो या रेंगने वाले कीड़े की। ईश्वर ने सभी को जीवन दान और आयु दी है, जीने का वरदान सभी जीवों का हक़ है तो निरर्थक जान लेने वाला मनुष्य कौन? आज के आधुनिक और तेज़ गति से दौड़ते युग में हमने प्रगति बहुत कर ली है मगर पर्यावरण और प्रकृति का जो हश्र हुआ है उसका मूल कारण हमारी संवेदनहीनता है। स्वयं को प्रकृति की रचना न मानकर हम पृथ्वी के मालिक बन बैठे हैं। अपने पर्यावरण, पेड़ पौधों, जानवरों और अन्य जीवों से उनका ठिकाना छीनकर अपने आप को सर्वोपरि समझ रहे हैं परन्तु परिणाम हमारे सामने हैं। हत्यारे हैं हम सब, जिस धरती ने जीवन दिया उसी की हत्या पर आमादा। जिस डाल पर बैठा उसी को काटने की मूर्खता सिर्फ मनुष्य ही कर सकता है।