Sandhya Sharma

Others

4.5  

Sandhya Sharma

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वो माँ है ना !

वो माँ है ना !

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ऑफिस से लौटती सोनिया, थकी हुई सी बस की खिड़की पर सर टेके अपने आप से मन ही मन बातें कर रही थी, कल पक्का छुट्टी पर रहूँगी। अचानक आरती उसे हिलाती है, चलो.!! स्टॉप आ गया, और दोनों बस से नीचे उतर जाती हैं। रास्ते में सोनिया आरती से कहती है, कल मैं छुट्टी पर रहूँगी। दोनों अपने अपने रास्ते पर निकल जाती हैं। 

अगले दिन सुबह सोनिया आराम से उठती है, चाय के कप के साथ माँ उसकी सुकून भरी सुबह का स्वागत करती है। तबीयत तो ठीक है तुम्हारी? हाँ माँ, बस कल काम ज्यादा था, तो सोचा, आज छुट्टी लेकर आराम कर लूंगी ताकि कल रविवार में सब जरूरी काम निबटा सकूं।

कल मंदिर में लड़के वाले भी आ रहे हैं, उससे जरूरी कोई काम नहीं, कल घर पर ही रहना, शाम को मंदिर चलना है। माँ ने तेज स्वर में कहा, सोनिया कोई उत्तर नहीं देती है, अपनी चाय की आखरी घूँट के साथ एक लम्बी सांस लेते हुए उठकर नहाने चली जाती है। जैसे ही नहाकर बाहर आती है, माँ के हाथों की बनी कचौड़ीयों की खुशबू नाक से होते हुए उसके पेट तक पहुँच जाती है। अब भूख उसके पेट में घंटी बजाने लगती है। वो तेज आवाज़ में माँ से कहती है, अब रुका नहीं जा रहा माँ... जितनी बन गई हैं, उतनी ही लेकर आ जाओ, माँ आ जाती है और दोनों नाश्ता करती हैं। अब कल सोनिया को क्या पहनकर जाना है, इस बात की चर्चा में दोनों लग जाती हैं। दिन कब निकल जाता है दोनों को पता ही नहीं चलता। 

शाम को सोनिया की पसंद का नाश्ता और कुछ मिठाइयाँ लेकर पापा जैसे ही घर में घुसते है, नाश्ते की खुशबू को सोनिया की नाक तक पहुंचते वक्त नहीं लगता। क्या बात है पापा...!! ? आज सबकुछ मेरी पसंद का....!! कोई खास बात है क्या...? नहीं..! बस तुम्हें सुबह सोता हुआ देखकर समझ गया था कि तुम आज शाम घर पर ही मिलोगी, सो तुम्हारी पसंद का नाश्ता ले आया। वरना.... !! तुम नाश्ते के समय हमारे साथ कहाॅं होती हो !..? और गहरी सांस लेते हुए सोफे पर बैठ जाते हैं। माँ पानी का गिलास ट्रे में लिए, खड़ी बेटी की मस्ती भरी शरारत देखकर मुस्कुरा देती है। पानी पीकर, रूपेश जी अपने कमरे में कपड़े बदलने चलें जाते हैं। शारदा उनके लिए चाय बनाने चली जाती है, माँ मेरे लिए भी थोड़ी सी, सोनिया आवाज़ लगाती है, हाँ .... हाँ! तुम्हारी भी बनाई है, माँ चाय लाती है और सब चाय पीते हुए आपस में मंदिर जाने की चर्चा करने लगते हैं। 

अगले दिन रविवार होने के कारण, सब देर से सोकर उठते हैं, और अपने अपने काम निबटाने में लग जाते हैं। दिन कब बीत जाता है, पता ही नहीं चलता ! शाम को सब मंदिर पहुँच कर लड़के वालों का इंतज़ार कर ही रहे थे, कि तभी, रुपेश जी की नज़र सुशील और उसके परिवार पर पड़ती है, और वो स्वागत हेतु हाथ जोड़कर उनका अभिनन्दन करने के लिए आगे बढ़ जाते हैं। दोनों हाथ मिलाते हैं, और बैठकर बात करने लगते हैं। इधर सुशील की माँ भी सोनिया से बात करते करते अचानक से पूछती है बेटा, शादी के बाद नौकरी तो नहीं करोगी..! ? सोनिया, स्तब्ध सी, अपने माँ पापा को देखती निरुत्तर रह जाती है। कुछ समय के लिए सन्नाटा छा जाता है, तभी सुशील की छोटी बहन मौली सन्नाटे को तोड़ते हुए पूछती है, क्या आपको गाना आता है भाभी..? सोनिया धीरे से सर हिलाते हुए हाँ, में उत्तर देती है, और एक सुंदर भजन सबकी फरमाइश पर सुनाती है। कुछ नाश्ता चाय, लेने के बाद, एक दूसरे से विदा लेकर सब मंदिर की सीढ़ियां उतरने लगते हैं।

आज सोनिया सीढ़ियां उतरते उतरते महसूस करती है कि कहीं जीवन में ऊपर चढ़ने वाली सीढ़ियां तो वह नहीं उतर रही। माँ उसकी परेशानी समझ रही थी। घर पहुँच कर.., सोनिया, को उदास देखकर, माँ उसकी हाँ या ना, पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी। अगले दिन सोनिया रोज़ की तरह ऑफिस चली जाती है, और रुपेश जी बैंक।

अब, माँ घर पर अकेली, कल की तस्वीर को आँखों में देखती, और दिल में महसूस करती सोनिया के बारे में सोच रही है, तभी फोन की घंटी बजती है, शारदा जी फोन उठाती है, हेल्लो ! सुशील की माँ सीमा जी की आवाज़ शारदा जी के कानों में सुनाई देती है, आप कैसी हैं..? मैं ठीक हूँ, शारदा जी उत्तर देती हैं। आप कैसी है? कल घर पहुँचने में कोई दिक्कत तो नहीं हुई..! शारदा जी इधर से पूछती है। नहीं! कोई दिक्कत नहीं हुई, हम सब आराम से पहुँच गए थे। मैंने, सोनिया के बारे में सुशील से बात की, वो तो राज़ी है इस रिश्ते के लिए, मैंने सोनिया की मर्जी जानने के लिए आपको फोन किया है, सीमा जी की आवाज़ में उत्सुकता झलक रही थी। सीमाजी की बात का उत्तर देते हुए, शारदा जी ने कहा, वैसे तो जो हमारा फैंसला होगा वहीं उसका भी होगा, पर इस बारे में हमने उससे अभी कुछ पूछा नहीं है। ठीक है !! आप आराम से उससे बात करके हमें बता दीजियेगा, हमें आपके फोन का इंतज़ार रहेगा, कहकर सीमाजी फोन रख देती हैं।

माँ की उलझन उसके माथे की सिलवटों को कम होने ही नहीं दे रही थी। शाम को घर लौटी, सोनिया की मुस्कुराहट, मायूसी में तब बदलने लगती है, जब वो माँ को बहुत हैरान परेशान देखती है, और पूछ बैठती है, क्या हुआ माँ...?? कुछ नहीं.!! कुछ तो... बताओ ना माँ!! कुछ खास नहीं बस, सीमा जी का फोन आया था। वो, तुम्हारा जवाब जानना चाहती थी, शादी की हाँ, या ना, के बारे में।

सुनते ही पहले तो सोनिया गहन सोच में पड़ जाती है, उसे खुद नहीं पता की वो क्या फैसला ले, पर दूसरी ओर माँ के माथे की सिलवटें...उसे मजबूर कर रही थी, कि फैसला माँ पर ही छोड़ दे। किसी तरह हिम्मत बटोर कर उनसे कह ही देती है, कि आपको जो ठीक लगता है, वो उत्तर दे देती माँ...। पर तुमसे पूछे बिना कैसे दे देती..? माँ ने परेशान होकर कहा, ये जिन्दगी तुम्हारी है, मेरी नहीं। आगे इस जिन्दगी को तुमको जीना है, मुझे नहीं। तुम कैसे इसको ज्यादा खुशी से जी पाओगी, ये तुमसे बेहतर कोई नहीं जानता सोनिया ! तो तुम्हारी जिन्दगी का उत्तर ये माँ कैसे दे सकती थी..? तभी अपनी आवाज़ में ढाँढस बटोरती, और मज़बूती भरती हुई सोनिया, खुले गले से माँ से कह देती है। आप मेरी माँ हो, मैं आपकी नहीं। ये जिन्दगी आपकी दी हुई है, आपको इस जिन्दगी का कोई भी फैसला लेने का पूरा हक़ है, माँ !! आपका जो भी फैसला होगा, वो मेरा होगा। सोनिया मुस्कुराकर एक प्याली चाय की फरमाइश माँ के सामने कर देती है। माँ!!  बहुत ही हल्के मन से भरी हुई, चाय की दो भारी प्यालियां लाती है, और दोनों साथ में चाय पीती हैं। आज माँ के पास बेटी के प्यार और विश्वास की ताकत का जो सुकून था, उसने, उसके माथे की सिलवटों को मिटा दिया था, और वहीं बेटी ने अपने जीवन के फैसले की जिम्मेदारी माँ को देकर अपने अंदर सुकून ढूंढ़ लिया था, कि वो माँ है ना!! जो करेगी अच्छा ही करेगी। 

अगले दिन सोनिया के ऑफिस जाने के बाद माँ, बहुत विश्वास के साथ फोन मिलाती है, सीमा जी फोन उठाती हैं, नमस्ते, सीमाजी, कैसी हैं..? हम सब ठीक हैं, आप कैसी है? सीमाजी सहजता से पूछती हैं, हम सब भी ठीक हैं। मैंने, आपको ये बताने के लिए फोन किया था, कि सोनिया, के पापा और मैं, दोनों ये चाहते हैं, कि सोनिया की शादी वहीं हो, जहां... शादी के बाद, नौकरी ना करने की कोई शर्त, ना हो... ये उसकी अपनी इच्छा पर निर्भर करता है कि वो नौकरी करें! या ना करें!! एक सांस में सब कुछ कहकर शारदा जी, बहुत हल्का महसूस कर रही थी।

आज बेटी के भरोसे ने, माँ के अंदर के साहस को दोगुना कर दिया था। आज उसके माथे पर सिलवटें नहीं, होंठों पर मुस्कुराहट थी। तभी दरवाजे की घंटी बजती है, और फोन रखकर शारदा जी, एक खुली मुस्कुराहट के साथ दरवाजा खोलती हैं, सोनिया, को सामने देख उनकी मुस्कुराहट में और चार चाँद, लग जाते हैं, वो सोनिया, को सारी बात बताती हैं। 

आज एक माँ ने जग जीत लिया था, अपनी बेटी के विश्वास और भरोसे का, और बेटी ने माँ का प्यार...… दोनों अंदर ही अंदर फूले नहीं समां रही थी, और सुकून के वो पल.... दो प्याली चाय के साथ बिता रही थी।



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