Sandhya Sharma

Others

4.3  

Sandhya Sharma

Others

वो सात फेरे

वो सात फेरे

5 mins
272


रोहित से शादी के सपने सँजोये सोना अपनी यादों की पोटली को हर रोज़ खोलती, टटोलती और खुशी की दो चार सांसे ज्यादा लेकर उसे फिर से बाँधकर रख देती, जैसे यादों की इस पोटली को हवा रूपी कुछ सांसें देने के लिए खोलना जरूरी हो। ये सिलसिला यूँ ही चलता रहा और दोनों की पढ़ाई भी आगे बढ़ती रही। वो कच्ची उम्र में हुआ प्यार, सोना और रोहित को दिन प्रतिदिन पास ला रहा था, और दिल इस विश्वास से भर रहा था कि इस पहले प्यार को हम अलग नहीं होने देंगे, दोनों इसके लिए भरपूर मेहनत करने में जुटे थे। क्योंकि अगर इच्छायें वाजिब हों तो, बच्चों की इच्छाओं की पूर्ती की कामना हर माँ बाप करते है। यहाँ भी कुछ ऐसा ही था, सोना भी एक अच्छे और शिक्षित परिवार से ताल्लुक रखती थी, तो रोहित के माता पिता को भी इस शादी से कोई आपत्ति नहीं थी। बस शर्त यही थी कि दोनों अभी अपनी पढ़ाई और उसके बाद कैरियर पर ध्यान देंगे, अगर वो इसमें सफल रहे, तो उनका विवाह बंधन भी होना निश्चित ही था।

सोना अक्सर रोहित की माँ रेखा जी से भी मिला करती थी, और वो अक्सर उसे समझाती, कि देखो सोना रोहित अपने लक्ष्य से ना डगमगाये, तुम अपने प्यार के साहस से उसको इतना मजबूत बना दो, कि जब वो अपनी मंजिल की ओर बढ़े तो तुम्हें छोड़ने का गम उसे कमज़ोर ना करें, बल्कि तुम्हारे प्यार की ताकत उसकी इच्छा शक्ति को दोगुना कर दे, और वो अपने प्रयास में सफल हो, उसकी सफलता ही तुम्हारे प्यार की जीत है। बस फिर क्या था, उस दिन से सोना ने अपने प्यार में प्रोत्साहन भी भर लिया, और हर दिन रोहित को एस.आई की परीक्षा में सफल होने के लिए प्रोत्साहित करती रही। ईश्वर के आशीर्वाद और सभी की शुभ कामनाओं से वो दिन आ ही गया, जब रोहित का सेलेक्सन हो गया, अब उसे ट्रेनिंग के लिए जाना था। मम्मी पापा की खुशी का ठिकाना ना था, और सोना, सोना तो जैसे फूले नहीं समां रही थी कि अब तो मंजिल पास ही है, बस ट्रेनिंग खत्म होते ही उसे, उसके सपनों का राजकुमार मिल ही जाएगा। 

आखिर वो दिन आ ही गया, आज रोहित को जाना है, स्टेशन पर सब लोग उसका हौसला बढ़ाने के, लिए उपस्थित थे, पर उसकी आँखे तो उसी को ढूंढ रही थी, जिसको पाने के लिए वो इतनी दूर जा रहा था। अचानक ऊपर पुल पर से सोना ज़ोर से चिल्लाई आई लव यू रोहित, स्टेशन उसकी आवाज़ से गूँज रहा था, सबकी नजरें आसमान पर टिक गई और सहसा सोना दोबारा चिल्लाई.... आई.लव यू रोहित, सोना से आँखें चार होते ही रोहित इधर से तेज स्वर में दोहराता है..… आई लव यू टू..सोना..जैसे दोनों एक दूसरे को अपने अपने प्यार की ताकत का ध्वनि रूपी टॉनिक प्रदान कर रहे हों, और तेजी से पुल की सीढ़ियाँ उतरती सोना रोहित की तरफ भागी चली आ रही थी। रोहित भी उसके, पास आने का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था। सोना के हाथ में एक पैकेट था, जो, सोना रोहित के लिए लाई थी, पैकेट हाथ में पकड़ाती हुई सोना, बिन कहे भी सब कुछ कह रही थी और ट्रेन धीरे धीरे चलने लगी थी। जैसे जैसे ट्रेन की गति बढ़ रही थी सोना पीछे छूट रही थी, और रोहित अपनी मंजिल की ओर कदम बढ़ा रहा था। ट्रेन दौड़ने लगती है और सोना आँखों से ओझल हो जाती है।

रोहित मम्मी पापा और अपनी बहन के पास आकर बैठ जाता है, वो लोग उसके साथ कुछ दूर तक ही जाते हैं, एक दो स्टेशन के बाद सब उतर जाते हैं, और रोहित की ट्रेन उस स्टेशन से आगे निकल जाती हैं।

इधर सोना आँखों में सतरंगी सपने सँजोये उन सुनहरे पलों का इंतज़ार कर रही थी कि कब रोहित की ट्रेनिंग खत्म होगी, कब वो ज्वाइन करेगा, और कब हमारी शादी होगी। आखिर वो दिन आ ही जाता है। आँखों में अपनी सफलता का प्रकाश लिए रोहित वापस आ जाता है। आज उसके पास आत्म संतुष्टि है, क्यूँकि, माता पिता के साथ साथ रोहित सोना से किया हुआ वादा भी पूरा करता है। अब बारी थी कि माता पिता अपना वादा निभायें।

दोनों परिवार आपस में मिल बैठ बातचीत करते है, और शादी की तारीख पक्की हो जाती है। "वो पावन दिन 25 फरवरी 2006 शनिवार का था। धीरे धीरे दिन नजदीक आने लगते हैं, और तैयारियाँ भी ज़ोर शोर से होने लगती हैं। आखिर वो दिन आ ही जाता है जब रोहित घोड़े पर बैठ अपने सपनों की राजकुमारी सोना से ब्याह रचाने चल देता है, बारात दरवाजे पर पहुँचती है, लाल जोड़े में सजी सँवरी सोना किसी देवी से कम नहीं लग रही थी। उसके मन में बिखरे हुए खुशी के रंग, चेहरे की लालिमा को और भी बढ़ा रहे थे। इन खूबसूरत पलों के इंतज़ार में दोनों ने वर्षों तक तपस्या की थी, और आज दोनों के मन की ख़ुशी का ठिकाना ना था। जयमाल का कार्यक्रम संपन्न होने के बाद सबने खाना खाया और रिश्तेदारों का भी एक एक करके जाना शुरू हुआ। 

चार बजे फेरे थे, ये सात फेरे, सिर्फ फेरे ही नहीं, अपितु सात रंगों की एक ऐसी डोर थी, जिसमें बन्धने के लिए वो कब से सतरंगी सपने संजोये हुए थी। दोनों के लिए ये मंडप, केवल मंडप ही नहीं, बल्कि सतरंगी इंद्रधनुष की छाया थी। ये अग्नि कुंड, सिर्फ अग्निकुण्ड ही नहीं था, सात देवताओं की साक्षात उपस्थिति थी, जो स्वयं उन दोनों को आशीर्वाद देने आए थे। ये सतरंगी फूलों की लड़ियाँ ही नहीं, सात बहारें थी, जो हिल हिल कर दोनों को सात मौसमों का एहसास करा रही थी। ये सतरंगी साड़ी ही नहीं, सात देवियों की पोशाक थी, जो सोना को पहना दी गई थी। सोना के हाथों की ये सतरंगी चूड़ियां, बसंत के फूलों का एहसास करा रही थी, मानो आज ही बसंत आ गया हो। ये रोहित का हाथ उसके हाथ में आना, मानो वो सात जन्मों का जीवन जी रही हो। फेरों के बाद, बिदाई लेती सोना सबके गले मिलती है, और आखिरकार रोहित की अर्धांगिनी बन, शिवरात्रि के दिन सोना पूरी तरह से उन सतरंगी रंगों में सजी, नए सपने आँखों में लिए रोहित की जिन्दगी में हमेशा के लिए आ जाती है।

आज भी उन सात फेरों के उन सुनहरे पलों को भुला नही पाती है सोना, कितने हसीन थे ? वो पल!! जिनको जीने के लिए उसने वर्षों इंतज़ार किया था, और अपनी जिन्दगी की बहुमूल्य खुशी को पा लिया था। आज वो बहुत खुश है। 


Rate this content
Log in