Sandhya Sharma

Others

4.8  

Sandhya Sharma

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स्वर्ग से सुंदर मेरा परिवार

स्वर्ग से सुंदर मेरा परिवार

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परिवार में जया सबसे बड़ी बहू थी, सुन्दर, सुशील और काम में निपुण जया को देखकर अक्सर शांतनु की माँ उसके बाबूजी से कहती, आज्ञाकारी बेटे के साथ साथ ईश्वर ने हमें एक अच्छी बहू भी दी है, बस उनकी कृपा बनी रहे। अमित और छाया भी यही होते तो कितना अच्छा होता! अचानक एक दिन उनकी तबियत बिगड़ गई। जॉच कराने पर पता चला कि उनकी दोनों किडनी खराब हो गई हैं। बाबूजी पहले से ही दिल के मरीज़ थे, इसलिए जया ने शान्तनु को समझाया कि ये बात बाबूजी को ना बताई जाए। अब समस्या ये थी कि कम से कम एक किडनी तो बदलनी ही चाहिए। शान्तनु ने छोटे भाई अमित को सारी बात बताई, अगले ही दिन अमित और उसकी पत्नी छाया दिल्ली आ गए। अचानक दोनों को देखकर बाबूजी ने कहाँ, चलो माँ के बहाने से ही सही तुम दोनों भी आ गए, अच्छा किया, खुश रहो, और सोफे पर बैठ गए।

दोनों भाई मिलकर माँ के इलाज़ की व्यवस्था में लग गए, और जया और छाया माँ बाबूजी की सेवा में। किडनी का कहीं से इन्त्ज़ाम ना होने पर दोनों चिन्तित थे, बाबूजी को बच्चों की चिंता भांपते देर ना लगी। वो कह उठे, कुछ छिपा रहे हो क्या?सभी एक स्वर में बोल पड़े नहीं बाबूजी, आप से क्या छिपायेगे ! कोई भी समस्या होगी आप ही के पास आएँगे, और बनाबटी हँसी हँसने लगते ताकि बाबूजी की सेहत पर कोई बुरा असर ना पड़े।

तभी रक्षा बन्धन पर राधिका के आने की खबर सुनकर सभी को बहुत खुशी होती है, साथ ही चिंता भी सताने लगती है कि कहीं इस हालत में उसे माँ की बीमारी का पता न चल जाए, क्योंकि राधिका गर्भवती थी। राधिका के आने की बात सुनकर माँ भी खुश नज़र आने लगी, जो अभी तक बीमारी की खबर सुनकर अंदर ही अंदर परेशान थी। 

सबका इंतज़ार खत्म कर राधिका, अपनी हँसी के फूल बिखेरती, सुंदर राखियों और मिठाई के साथ घर में प्रवेश करती है। राधिका के पति अमरीका में थे, इसलिए राधिका अकेली ही आई थी। सारा घर मानों चहक उठता है। जया का बेटा बुआ के आने पर बहुत खुश था, होता भी क्यूँ न? ! बुआ उसके लिए खिलौने और चॉकलेट जो लाती थी। बहन ने भाइयों की कलाई पर राखी रुपी प्रेम का बंधन बांधा और भाइयों ने भेंट स्वरूप उपहार देकर उसका मान बढ़ाया। 

माँ बाबूजी पूरे परिवार को एक साथ खुश देखकर फुले नहीं समां रहे थे। सभी ने माँ बाबूजी के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लिया, और खाने की मेज पर पहुँच गए। 

रात में राधिका माँ के पास सोई थी, देर रात तक किस्से कहानियाँ चलते रहे। अचानक जया कमरें में आकर माँ जी से बोली, आपने आज दवा नहीं ली माँ जी? सुनते ही राधिका चौंक गई, "दवाई! क्या हुआ माँ को भाभी? "

"कुछ नहीं दीदी", कहकर जया सकुचाई, "बस पेट में दर्द बता रही थी, तो डॉक्टर ने कुछ दवाईयां दी थी", ना चाहते हुए भी जया को झूठ बोलना पड़ रहा था क्योंकि ऐसी हालत में राधिका को टेन्शन नहीं देना चाहती थी। ननद के लिए दूध का गिलास रखते हुए जया ने कहा दीदी याद से पी लीजियेगा।

अगली सुबह छाया, गरम चाय के साथ सबको जगाती है। सब साथ में चाय पीकर अपने अपने काम में लग जाते हैं। आज राधिका को जाना है, इसलिए छाया और जया उसकी विदाई की तैयारी करने लगती हैं। दोपहर का खाना सबके साथ में खाकर शांतनु मिठाई और फल लेने बाज़ार जाता है वापस आते समय उसको बाबूजी का चश्मा भी बनबाना था।

राधिका के जाने की बात सुनकर माँ कह उठती है "एक दो दिन रुक जाती तो मन खुश हो जाता", "अगर डॉक्टर से अपॉइंटमेंट नहीं होता तो जरूर रुक जाती माँ", कहकर राधिका सबसे विदा लेने लगती है। माँ के गले मिलकर राधिका छाया और जया से भी मिलती है, दोनों ननद के पैर छूती है, अपना ख्याल रखना दीदी, कहकर दोनों की आँखे भर आती हैं। 

"अरे! ये क्या भाभी ? विदाई आप दोनों की हो रही है या मेरी", कहकर राधिका सबको हॅसा देती है, और कार में बैठ जाती है। शांतनु अमित को राधिका के साथ जाने को कहता है। दूर तक जाती कार को माँ बाबूजी अंत तक निहारते रहते हैं, और फिर सब अंदर आ जाते हैं।

चार दिन बाद माँ को अस्पताल ले जाना है, शांतनु और जया फिर सोच में पड़ जाते हैं, कि किडनी का इन्त्ज़ाम कहा से होगा। तभी जया के दिमाग में ख़याल आता है कि क्यूँ ना हम में से कोई अपनी एक किडनी माँ जी को दे दे? जया की बात सुनकर पहले तो शांतनु अचरज में पड़ जाता है, पर कोई और रास्ता ना होने के कारण उसकी बात पर गौर भी करता है। अमित और छाया से सलाह लेने के बाद चारों डॉक्टर के पास जाते हैं, और अपना अपना चेक-अप कराते हैं। अन्त्तत: डॉक्टर छाया की किडनी माँ जी को लगाने की सलाह देते हैं। छाया भी खुशी खुशी राजी हो जाती है। जब माँ को पता चलता है कि बहु की किडनी निकालकर डॉक्टर उनकी जान बचाना चाहते हैं, तो वो इंकार कर देती हैं, पर सबके समझाने, और सबकी इच्छा का मान रखने के लिए भारी मन से ठीक है, बोल देती हैं।

बाबूजी इन सब उलझनों से अनजान, अपनी ही सीता राम की माला में लगे थे। आखिर वो दिन आ ही जाता है, और माँ का ऑपरेशन सही समय पर हो जाता है। जया ने माँ और छाया की दिल से सेवा करके परिवार की बड़ी बहू होने का जो फ़र्ज़ अदा किया है, उससे कहीं ज्यादा बड़ा फर्ज छाया ने अपनी किडनी देकर किया है। आज माँ फूले नहीं समां रही थी। चारों बच्चों के सर पर हाथ फेरती माँ की आँखों से खुशी की गंगा बह रही थी, और बाबूजी दूर खड़े उस पावन प्रेम की गंगा में नहा रहे थे, सहसा उनके मुँह से निकल पड़ता है, इसे कहते हैं परिवार!

"अरे ! बाबूजी आप, कब आए?"

" बस अभी, तुम सबके लिए चाय लाया हूँ।" सब खुश हो जाते हैं।

 


 


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