वंश का टीका
वंश का टीका
आज जुबैदा बहुत खुश थी । आखिर खुश भी क्यों ना हो? आज उसके घर उसकी बहू को बेटा जो हुआ था।आज तो वो सोहिल गा गा कर पागल हो रही थी ,दो पोती पर एक पोता हुआ था।
"दादी ,आज तो बहुत खुश हैं आप।"
"अरे खुश क्यों ना होऊं, वंश का टिक्का जो पैदा हुआ है।पूरे मोहल्ले में दवात करूंगी।"
मुझसे आखिर रहा नहीं गया तो मैनें पूछ ही डाला "क्या बेटी वंश का टिक्का नहीं होती?"तो उन्होंने मुझे झिड़क दिया, किसी को देखा है जिसने बेटी की पैदाइश पर कहा हो मेरे वंश का टिक्का पैदा हुआ है।लड़का लड़का होता है, लड़की लड़की होती है।शादी के बाद बेटी के हाथ बन्ध जाते हैं।उसे अपने मर्द के हिसाब से रहना पड़ता है।उन्होनें ऐसे ऐसे तर्क दिए कि मैं खामोश हो गई।क्योंकि उनकी बातों में सच्चाई थी।कहने को तो मर्द और औरत में कोई फर्क नहीं पर समाज में अब भी बहुत फर्क है।
जब कोई लड़की घर देर से आती है तो लोग हज़ार सवाल करते हैं। ।समाज अजीब नजरों से देखता है पर लड़कों के साथ ऐसा नहीं होता ।शादी के बाद लड़की अपने सास ससुर की जिमेदारी उठाती ।क्या वैसे कोई दामाद अपने सास ससुर की जिमेदारी उठाता है ? अगर कोई उठाता भी है तो समाज उसे अलग अलग नाम दे देता है।लोग उस पर फब्तियां कसतें हैं जैसे एक बेटा अपने माँ बाप के वंश का टिक्का हो सकता है।क्या एक बेटी नहीं? माँ बाप तो बेटा बेटी दोनों को बड़े प्यार और मेहनत से पालते हैं।पर सारी जिमेदारी माँ बाप की बेटों को क्यों दी जाती है।शादी के बाद बेटी ही पराई क्यूँ होती है।कहने को तो हम इक्कीसवीं सदी में हैं।,पर सोच पुरानी है ।तभी तो लड़का ही वंश का टिक्का है।