तुम कौन हो ?

तुम कौन हो ?

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जाड़े की शाम थी।दरवाज़े पर कउड़ा घेरे चन्नर सहित तीन चार लोग आग ताप रहे थे।जैसा उन दिनों अक्सर हुआ करता था मटर या नया नया आलू खेतों में तैयार होने लगते थे और शरारती युवा उसे चुरा लाया करते थे और ऐसे सार्वजनिक कउड़े की शोभा अपने उस योगदान से और भी बढ़ा दिया करते थे।यह अलग बात है कि अगली सुबह गोइड़े के खेत से हुई इस झपटमारी को लेकर अंतहीन तू- तू, मैं- मैं भी शुरु हो जाया करती थी।लेकिन यह परंपरा चल पड़ी थी तो चल पड़ी थी।हां,अगली रात किसी और का खेत निशाना बनता था।

चन्नर मशहूर थे ऐसे तिकड़मी युवाओं को शरण देने और उकसाते रहने के लिए।लम्बा चौड़ा शरीर,गोरा रंग,बड़ी बड़ी आंखें और असली नाम चन्द्र बदन दुबे था।जिस घर के अहाते में यह मजलिस लगा करती थी वह विश्वनाथ बाबा का घर था।विश्वनाथ बाबा ख़ुद भी थोड़ी देर बैठा करते थे और अपने भरसक उपस्थित लोगों में अध्यात्म ज्ञान भी बांटा करते थे।उस शाम वे बता रहे थे कि किस तरह कस्तूरी कुंडल में रहती है और मृग उसे जंगल -जंगल में ढूंढ़ते रहते हैं।उसी क्रम में वे बोल रहे थे-"" एक दिन एक किसान अनन्त राम अपने मित्र खुशीराम के घर देर रात में गया ।आधी रात हो चुकी थी।अनन्त राम ने खुशीराम के दरवाजे को खटखटाया और आवाज़ भी दी।खुशीराम ने बाहर आकर पूछा- "कौन है भाई...क्या बात है ?...ये आधी रात गये क्यों जगा रहे हो ? "अनन्तराम बोला-"अरे मित्र इतनी ठंढक पड़ रही है और मुझे घर में नींद नहीं आ रही थी।सोचा बीड़ी पी लूं।तो देखा कि दियासलाई तो है ही नहीं... सो तुम्हें तकलीफ़ दे रहा हूं।"

खुशीराम अचानक ठठा कर हंसने लगा ।हंसने का कारण पूछने पर उसने अनन्त राम की पीठ ठोंकते हुए कहा - ""वाह भाई वाह !तुम्हारे हाथ में लालटेन है,फिर भी बीड़ी सुलगाने के लिए मेरे पास इतनी रात भागे चले आए हो ?.....यह भी क्या ख़ूब रही।"

विश्वनाथ बाबा की इस कहानी ने वहां उपस्थित गांववालों की आंखें खोल दीं।सचमुच कभी कभी आदमी मतिभ्रम का शिकार होकर जो सामने दिखाई देता है वह देखता नहीं है और उसी को पाने के लिए मारा - मारा फिरता रहता है। कउड़े में शामिल थोड़ा गंवार किस्म के एक आदमी श्याम लाल ने कहा -"मालिक,हमको तो ऐसा लगता है कि भगवान ही उस आदमी को मतिभ्रम का शिकार बनाकर उसकी परीक्षा लिया करते हैं।"उसकी बात भी सर्वसम्मति से स्वीकार कर ली गई और उस रात की वह कउड़ा सभा विसर्जित हो गई।

गांव शहर के बेहद क़रीब था।इतना कि अगर सर्कस वाले रात में अपनी परम्परागत सर्चलाइट फेंकते थे तो अंधेरा चीरते वह उस गांव के आसमान तक पहुंच जाया करती थी और उत्पाती लड़कों का झुंड अगले दिन शहर के सर्कस को देखने के लिए कूच कर जाता था।

शहर में एक नामी स्वामी जी और ज्योतिष विद्या के शीर्ष संत ज्ञानानंद का आगमन हुआ।विश्वनाथ बाबा के मंझले बेटे राजन और बहू कमला को पिछले साल ही पुत्र शोक हुआ था।वे अल्पायु मृत्यु से विचलित थे।वैसे घर में जब भी मौत आती तो घर क्या वह पूरा गांव भी उससे विचलित और दुखी हो जाया करता था।ऐसे मातम के बावज़ूद जीवन को तो वापस पटरी पर आना ही होता है।जग की रीत थोड़े ना कोई बदल पाया है।लेकिन विश्वनाथ बाबा की मझली बहू ने लगभग अपना सुध बुध खो दिया था।लगभग एक साल हो चले थे लेकिन उसके आंसुओं की धार कम नहीं हुई थी।गांव वाले तरह -तरह की झाड़ फूक भी करवा डाले थे।शहर के डाक्टर उन्हें एक मनोरोगी मान बैठे थे और उसी के अनुसार दवाइयां चलने लगी थीं।

तय हुआ कि संत ज्ञानानंद के सत्संग में पूरे हफ्ते शामिल होना है।विश्वनाथ बाबा किसी को रोक टोक नहीं करते थे।उन्होंने अपने अब तक के जीवन के उतार चढ़ाव में एक दो नहीं अनेक जीवन और मृत्यु देखी थी।उत्थान देठा था पतन देखा था।राजे देखे ,अंग्रेजी शासन देखा,जमींदारी भोगी और अब गांव के एक साधारण किसान बनकर जीवन के अंतिम पन्ने उलट रहे थे।उनकी पत्नी पार्वती देवी कुछ साल पहले गोलोकधाम चली गई थीं।तब से वे और भी तितीक्षित हो चले थे।

संत ज्ञानानंद का प्रवचन सत्र चल रहा था।वे बता रहे थे-

"जब भी मृत्यु होती है मन प्रतिक्रियात्मक संवेगों उर्फ़ संस्कारों और अति स्नायविक परामस्तिष्कीय स्मृतियों के साथ देह का त्याग कर देता है।मन ठहरता नहीं है, वह सम्पूर्ण विश्व में रजोगुणी शक्ति की सहायता से अपने प्रतिक्रिया त्मक संवेगों की अभिव्यक्ति जनित प्यास मिटाने के लिए उपयुक्त देह की खोज तब तक करता रहता है जब तक उसे वैसी देह प्राप्त नहीं हो जाती है।"

उपस्थित लोग ध्यानपूर्वक संत की बातें सुन रहे थे ।वे आगे बता रहे थे - "देवयोनि के कौन - कौन लोग माने जाते हैं?........कुछ उन्नत मनुष्य अपनी धर्म निष्ठा के कारण मृत्यु के बाद जब पृथ्वी तत्व और जल तत्व से बनी अपनी भौतिक देह का त्याग तो कर देते हैं किन्तु शेष तीन तत्व तेज,मरुत और व्योम तत्व उनके विदेही मन के साथ रह जाते हैं तो ऐसे लोग ही देवयोनि श्रेणी में आते हैं।वे सात प्रकार के होते हैं-यक्ष,रक्ष,किन्नर, गंधर्व, विद्याधर, सिद्ध और प्रकृतिलीन ।"

अभी वह इन सातो प्रकार के देवयोनिकों की विस्तृत चर्चा कर ही रहे थे कि भीड़ में से लगभग चीखते हुए एक औरत संत के मंच तक पहुंच कर उनके चरणों में लोट गई।संत के अनुचरों ने दौड़कर उन्हें पकड़ कर अलग किया।वह औरत कोई और नहीं विक्षिप्तावस्था में कमला ही थी।राजन प्रवचन सुनने में इतने मंत्रमुग्ध थे कि उनके बगल से उठकर उनकी पत्नी कमला कैसे कूदते -फांदते संत तक पहुंच गई उन्हें पता ही नही चला था।वे भागे भागे उस तक पहुंचे ही थे कि संत ने आवाज़ दी-

"मां ! तू क्यों विह्वल है ?.....मां,मैं अच्छी तरह जानता हूं कि तू क्या जानना चाहती है?...धैर्य रख,मैं अभी तेरे लिए कुछ करता हूं...धैर्य और धीरज रख ...मां ! "

कमला अब तक संयत हो चली थी।लोगों की उत्सुकता की वह अब केन्द्र बिन्दु थी।संत ने अपना प्रवचन जारी रखा।समापन पर उन्होंने राजन और कमला को अपने पास बुलाकर अपने सामने पालथी मारकर ध्यानावस्था में बैठने को कहा।दोनों यंत्रवत बैठ गये।

"मां ! हम सब अब आपके लिए प्रभु से प्रार्थना करेंगे।"इतना बोल संत ज्ञानानंद प्रार्थना करने लगे -

"रत्नाकरस्तव गृहं गृहिणी च पद्मा ।

देयं किमपि भवते पुरुषोत्तमाय ।।

आभीरवामनयनापहृतमानसाय ।

दत्तं मन:यदुपते त्वमिदं गृहाण ।। "

......मां !तू जिस दुख से पीड़ित है वह दुख अनिवार्य था, अनिवार्य है और आगे भी रहेगा। सिर्फ़ तेरे लिये नहीं.. सभी के लिए।उसकी माया वह ही जाने !...लेकिन मां !...कुछ ही दिन की बात है..वह फिर तेरे घर में आ रहा है...तेरी गोद में....वह तेरा वही है जिसके लिए तू शोकाकुल है।विश्वास रख,धैर्य रख...और मेरी बात गांठ बांध ले ।" संत ज्ञानेश्वर ने अपनी बात पूरी की ही थी कि राजन और कमला उनके चरणों में साष्टांग प्रणाम करने लगे और पूरे पंडाल में उनकी जय -जयकार होने लगी।उस दिन के बाद क्रमशः कमला की तबियत में सुधार दिखने लगा था।

दिन,हफ्ते, महीने और अब साल भी बीतने ही वाला था कि विश्वनाथ बाबा के घर एक दिन तार आया जिसमें राजन और कमला को उनके बड़े बेटे ने तुरंत चंडीगढ़ बुलाया था जहां उसकी पत्नी को पहली डिलेवरी होनी थी।वे अगली सुबह ट्रेन से चंडीगढ़ पहुंचे ही थे कि उन्हें उनका बेटा अस्पताल लेकर पहुंचा जहां उनकी उपस्थिति में एक नवजात बालक शिशु ने जन्म लिया। हू ब हू...उनके बरसों पहले असमय काल के गाल में समा गये बेटे की मुखाकृति लिए....।

अपनी गोद में उठाकर कमला उस शिशु से पूछ बैठी- "तुम कौन हो ? "......शिशु की किलकारियों ने इस प्रश्न का उत्तर दे दिया था।



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