थम गया तूफान
थम गया तूफान
बरसात की वह तूफानी रात वाकई डरावनी थी। उस पर बिजली का जोर की आवाज के साथ कौंधना कमला के मन में सिहरन उत्पन्न कर रहा था। कितने सावन देख लिए, उम्र तो ढलान पर फिसलती ही जा रही थी परन्तु बिजली कड़कने का ये डर दिल से कभी गया ही नहीं। जब तक राहुल के पिताजी जीवित थे तब तक और बात थी। कमला के डर पर पहले ठहाका मार कर हँसते थे फिर पीठ थपथपा देते। उस स्पर्श में ही जाने क्या जादू था जो कमला का डर फौरन छूमंतर हो जाता।
परंतु अब तो कोई सहारा घर में है ही कहाँ जो सांत्वना का हाथ पीठ पर रख दे। पति तो बढ़ती उम्र और बीमारी के चलते छोड़ गए, परंतु राहुल......
वह तो किसी के मोहपाश में ऐसा जकड़ा कि माँ की ही सुध लेना भूल गया।
चार साल हो गए उसे घर छोड़े हुए। कभी माँ की याद नहीं आती होगी? आखिर कमला ने कितने लाड़प्यार से पाला था उसको। उसके पिता तो आवश्यकता से अधिक लाड़प्यार पर सदैव टोंका ही करते थे
"हर माँग पूरी करती जाओगी तो राहुल की अपेक्षाएँ बढ़ती चली जाएँगी। फिर जिस दिन कोई माँग ठुकराओगी उस दिन राहुल सहन नहीं कर पाएगा।"पर कमला भी ममता के आगे विवश थीं।
"आप हम माँ बेटे के बीच में मत बोला करो। एक ही तो बेटा है मेरा। सारे अरमान पूरे करने हैं इसके।"
धीरे धीरे बड़ा हो रहा था राहुल। हर बात मनवाने की आदत होती जा रही थी उसे। वैसे तो वह संस्कारी था परंतु जिद्दी भी बहुत हो चुका था।सारा दिन मित्रों से फोन पर बात करते रहना, कभी कभी देर शाम तक घर नहीं आना कमला को अब अखरने लगा था।कभी कभी वह राहुल के पिताजी से उसे समझाने को भी कहतीं, परंतु अब तो दोनों के सोचने का ढंग ही उलट चुका था।
जब भी कमला शिकायत करतीं तो वह उन्हें ही समझाने बैठ जाते
"देखो राहुल बड़ा हो रहा है। अब वह नन्हा बालक नहीं है कि तुम्हारी गोद में बैठा रहेगा। उसे दुनियादारी सीखने दो, मित्र बनाने दो। सावधानी से मित्रों पर नजर अवश्य रखो कि कहीं गलत संगत में न पड़ जाए, पर उस पर भरोसा जताओ और उससे भी अधिक अपने संस्कारों पर भरोसा रखो।"
कभी कभी कमला को लगता उनके पति ही अजीब हैं। जब लाड़ करने की आयु थी तो सख्ती करते थे और अब जब लड़का हाथ से निकल रहा है, तो मित्रवत व्यवहार करने लगे हैं।
कभी कभी वह इन बातों पर मुँह भी फुला लेतीं तो उन्हें ही समझाने बैठ जाते
"देखो जमाना बदल रहा है। साथ नहीं चलोगी तो इस दौड़ में पीछे छूट जाओगी। कल को हो सकता है वह अपनी जीवनसंगिनी भी खुद तलाश ले, फिर क्या करोगी? साथ तो देना पड़ेगा"
"कभी नहीं। ऐसा कुछ करेगा तो घर से निकाल दूँगी उसे। अभी केवल लाड़ देखा है उसने मेरा। मैं माँ हूँ उसकी, बहू चुनने का अधिकार केवल मेरा होगा। और इतनी सुंदर बहू खोजूँगी कि वह मना ही नहीं कर सकेगा।"
"मैं फिर कहूँगा जमाने के साथ चलना सीखो नहीं तो पीछे छूट जाओगी।"
सच ही कहा था शायद उन्होंने। वह पीछे छूट गई हैं, बहुत पीछे....
पति को गुजरे पाँच बरस हो गए। और राहुल? उससे तो चार बरस पहले खुद ही रिश्ता तोड़ बैठीं कमला। वजह वही, जिसका दूरदर्शी पति को पूर्वाभास था। परंतु कमला का अहम ही इतना बड़ा था कि बेटे द्वारा चुनी गई बहू को स्वीकार करने से साफ इनकार कर दिया था। एक बार मिलने को तक तैयार नहीं हुईं।
बेटा भी तो माँ की तरह ही जिद्दी था। बहुत प्रयास के बाद भी माँ नहीं मानी तो कोर्ट मैरिज करके रागिनी को घर ले आया।
कमला का क्रोध सातवें आसमान पर था। बहू का स्वागत करना तो दूर उसकी ओर देखा तक नहीं। फौरन बेटे को घर से निकलने का हुक्म दे डाला।राहुल ने पहले तो मनाने की कोशिश की, जब वह टस से मस नहीं हुईं तो वह भी रागिनी को लेकर वहाँ से चला गया।
पूरा मोहल्ला तमाशबीन बना हुआ था। सबकी आँखों में हँसी उड़ाने के भाव थे। बहुत अपमानित अनुभव किया राहुल ने। स्वयं से अधिक नई नई पत्नी के अपमान से तिलमिला गया था वह।
तमाशबीनों ने उसके जाते ही कमला को उकसाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उसे सही ठहराते हुए उसके फैसले की प्रशंसा की। अब ये अलग बात है कि पीठ पीछे घटना का खूब मजाक भी उड़ाया।
राहुल ने माँ से पूरी तरह दूरी बनाने के लिए सिम तक बदल डाला। रागिनी ने समझाने का प्रयास भी किया पर उसकी जिद के आगे रागिनी की एक न चली।क्रोध शान्त होने के बाद कमला को कभी कभी पछतावा भी होता परंतु राहुल का तो फोन नम्बर भी अब उनके पास नहीं था।
राहुल के किसी मित्र को उन्होंने कभी पसंद ही नहीं किया अतः किसी का घर आना जाना भी नहीं था जो कभी उसकी खैर खबर ले पातीं।
अचानक बिजली फिर कड़की और कमला यथार्थ में लौट आईं। बाहर मूसलाधार बारिश के साथ तेज तूफान था और अंदर का तूफान भी थमने का नाम नहीं ले रहा था। बरसती आँखें मूसलाधार बारिश को बराबर की टक्कर दे रही थीं। तकिया बुरी तरह भीग चुका था।
पिता के गुजरने के बाद ऐसे मौसम में राहुल भी माँ की हिम्मत बनाए रखता था। परन्तु पिछले चार बरस से वह सारे तूफानों का सामना अकेले ही कर रही थीं, फिर तूफान बाहर हो या अन्तर्मन में, झेलने स्वयं ही होते थे।
अचानक दरवाजे की घंटी बजी तो शीघ्रता से उन्होंने आँसू पोंछे।
"इस वक्त ऐसे तूफान में कौन होगा?"
खुद से ही बड़बड़ाती हुई दरवाजे पर पहुँची कि घंटी पुनः बज उठी।दरवाजा खोला तो एक युवती नजर आई, एक प्यारी सी बच्ची उसका हाथ थामे साथ खड़ी थी।
"कौन हो बेटी? किससे मिलना है? इतनी बारिश में कहाँ से आईं? अरे तुम तो भीग भी गई हो। अन्दर आओ।"
"माँजी गली के मोड़ पे हमारी गाड़ी खराब हो गई है। वहाँ बहुत पानी भरा हुआ है। मेरे पति गाड़ी के लिए मैकेनिक ढूँढने गए हैं। बेटी को भूख लग गई है। थोड़ा दूध मिल सकता है?"
पता नहीं क्यों कमला का दिल ममता से भर उठा। बहुत दिनों के बाद कोई मेहमान घर में आया था। अन्जाना ही सही पर कमला को बहुत अच्छा लगा।उन्होंने एक तौलिया लाकर युवती को दिया और अपने और बच्ची के गीले बाल ठीक से पोंछने की हिदायत देती हुई दूध गर्म करने चली गईं।
जब दूध लेकर लौटीं तब तक युवती अपने साथ लाए बैग में से निकाल कर बच्ची के कपड़े बदल चुकी थी।
"ये बहुत अच्छा किया तुमने। लो तुम दूध पिलाओ इसे, तब तक मैं गरमागरम पकौड़े बनाती हूँ तुम्हारे और तुम्हारे पति के लिए। वैसे उन्हें पता तो है न कि तुम इस घर में हो?"
युवती ने स्वीकृति में सिर हिलाया और मुस्कुराई। उसने एक बार भी पकौड़ों के लिए न नहीं कहा।
कमला को उसकी यह बात बहुत भायी। 'शायद इसे भी बहुत भूख लगी होगी। पता नहीं कब से बारिश में फँसे रहे होंगे बेचारे'।कुछ ही देर में वह चाय पकौड़े लेकर हाजिर थीं।
"बेटी अपने पति को फोन कर दो, पहले कुछ खालें फिर गाड़ी ठीक करा लेंगे, और इसे अपना ही घर समझो। गाड़ी आज ठीक न भी हो तो यहीं रुक जाना रात को।"
"वाह माँ, सारी ममता अन्जान लोगों पर लुटाने को तैयार हो। और जिसे आपकी ममता चाहिए थी उसे चार साल पहले भूल गई"
अचानक राहुल की आवाज कानों में पड़ते ही तड़प कर पलटी कमला। वह दरवाजे पर खड़ा मुस्कुरा रहा था।आँखों पर विश्वास नहीं हुआ कुछ पल, कि तभी बिजली कड़की। वह सहम जाती कि राहुल ने उन्हें गले लगा लिया।
"जब भी ऐसा मौसम होता था माँ, राहुल आपको याद करके उदास हो जाते थे। आज मैंने कहा कि बस बहुत हुआ, अब और नहीं, आज तो हम माँ के पास जाएँगे ही, और आपकी पोती से भी तो मिलवाना था आपको।"
बहू के ऐसा कहते ही कमला ने तीनों को एक साथ गले लगा लिया। उनके मुख से इतना ही निकला
"इतनी देर क्यों कर दी बहू? अगर मुझे कुछ हो जाता तो।"
रागिनी ने अपना हाथ उनके मुख पर रख दिया। आँखों से बरसात फिर हो रही थी और इसबार सभी की आँखें बरस रही थीं पर ये खुशी के आँसू थे। बाहर का तूफान मद्धम पड़ने लगा था, पर भीतर का तूफान तो अब थम चुका था।
