सुबह का भूला
सुबह का भूला
सूरज कोशिश कर रहा था ,ज़मीन पर पकड़ बनाने की।लेकिन पाँव लड़खड़ा रहे थे।वह खम्बे का सहारा लेकर बैठ गया।काफी देर यूँ ही बैठा रहा।सामने जो औरत ज़मीन पर बैठी थी ,जानी पहचानी लग रही थी।पागल थी शायद ! ज़मीन से मिट्टी की मुट्ठी भरती और फिर झोली में डाल देती।फिर झोली खाली कर देती।वह यही प्रक्रिया दोहराए जा रही थी।आने जाने वाले दया करके उसकी तरफ कभी पैसे फैंक देते और सूरज की तरफ घृणा की दृष्टि ।सूरज ने दिमाग पर बहुत ज़ोर डाला पर कुछ याद नहीं आया। वो किसी भिखारिन को क्यों पहचानेगा भला ! लेकिन ठोड़ी पर ये बड़ा सा मस्सा ! याद आया, ये तो समीर की माँ है।समीर उसका अच्छा दोस्त था।सूरज ने ही समीर का नशे की दुनिया से परिचय करवाया था।समीर पिछले साल उसका साथ छोड़ गया।नशे की ओवरडोज़ की वजह से.,लेकिन उसकी माँ ... इस हालत में,पागल.....भीख मांगते हुए ! समीर ही तो अपनी विधवा मां का इकलौता सहारा था! सूरज का सारा नशा एकाएक उतर गया। तो क्या मेरी माँ भी इसी तरह.....? क्या वह भी सड़कों पर पागलों की तरह भटकेगी? क्या उसे भी लोग भिखारी समझ पैसे फेंकेंगे? नहीं, नहीं....ऐसा कभी नहीं होगा.... बच्चे के कुकर्मों की सज़ा देवी जैसी माँ को क्यों ? सूरज कपड़े झाड़ता हुआ खड़ा हो गया।वह निश्चय कर चुका था और इस बार वह अपने निश्चय से डिगेगा नहीं। समीर की माँ का हाथ पकड़ कर अपने घर ले आया।सूरज की माँ हैरान थी।
" माँ ,हमेशा के लिए घर लौट आया हूँ।अब तो दो-दो माँओं की ज़िम्मेदारी मुझ पर है। कल से ही नौकरी की तलाश शुरू करता हूँ।मेरी सर्टिफिकेट और डिग्री की फ़ाइल निकाल दो"।और हाँ, कभी मेरा मन कमज़ोर पड़ने लगे तो दोनों माँए ढाल बन कर सामने खड़ी हो जाना।तुम्हारा चेहरा मेरे पैर वापिस खींच लेगा माँ", सूरज ने दृढ़ता से कहा।
माँ ने अपने बच्चे के सिर पर आशीर्वाद भरा हाथ रख दिया।वह खुश थी कि सुबह का भूला उसका बेटा शाम को घर लौट आया है!