सफर
सफर
ऑटो का ब्रेक सीधे "हिंदी साहित्य सम्मेलन" के गेट पर लगा। पिले कलर से सजे-धजे "बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन" के ऊपरी छत पर बड़े-बड़े शब्दों में लिखा "हिंदी साहित्य सम्मेलन" दूर से ही आकर्षित कर रहा था।
यू तो कई बार सामने से गुजरना हुआ था, पर अंदर कभी जाना नहीं। जैसे-जैसे पैर अंदर की तरफ बढ़ रहे थे, एक आलग अनुभव और सुखद सुकून प्राप्त हो रहा था । अंदर जाकर देखा तो खाली कुर्सियां, कुछ लोग सामने कुर्सियों के बैठे हुए थे, दिवारों पे हिंदी साहित्य के सम्मानित रचनाकारों का चित्रित विवरण और सामने भव्य मंच । इन सारी परिस्थितियों को देखते ही हिंदी की प्रकाष्ठता पर गर्व का अनुभव होने लगा था।
धीरे-धीरे लोग जुड़ने लगे,जब-भी कोई अंदर आता तो उसकी नजर पीछे घूम कर अवलोकन जरूर करती और कही ना कही अपना अस्तित्व ढूढने की कोशिश, इस बीच में चार पहियों से उतरते हिंदी के प्रतिष्ठित लोग,कोई प्रोफेसर,कोई डॉ. ,तो कोई पत्रकारिता में विख्यात। अब तो उसकी हालत और पतली होने लगी थी। हा, अंदर ही अंदर डर के साथ ये सकारात्मक भाव जरूर था कि आज सिखने को बहुत कुछ मिलेगा।
धीरे-धीरे कार्यक्रम शुरु हुआ,मंच पे सभी सम्मानित व्यक्ति विराजमान हो गए,कुर्सियां भी अभी लगभग भर चुकी थी। मंच उद्घोषक के अभिवादन के साथ कार्यक्रम आगे बढ़ा,सभी सम्मानित व्यक्ति अपने विचारों को साझा कर रहे थे,बिच-बिच में पुरस्कार बितरण भी चल रहा था।वो सबको एकटक नजरो से देखे जा रहा था और एक-एक बात गौर से सुन रहा था, आखिर आज पहली बार इतने बड़े हिंदी के आयोजन से सम्मलित होने का मौका जो मिला था।
तभी अचानक अपना नाम सुना और दंग रह गया, इधर-उधर,दाएं-बाये देखने लगा की कही कोई और तो नही। एक बार फिर से दुबारा नाम का उद्घोषणा हुआ, और वो हर्षित भाव के साथ हल्क़े हल्क़े कदमो से मच पर पहुँचा। सामने प्रतिष्ठित व्यक्तियों को देख पैर तो कांपने लगे थे,लेकिन जैसे-तैसे अपने आप को संभालेते हुए सम्मान लेने आगे बढ़ा,उसे युवा साहित्यकार के पुरस्कार से नवाज़ा गया।अभी तक उसको विश्वास नही हो रहा था कि कुछ समय पहले जिनको वो दूर से देख सुन रहा था,वो उसे बधाइयां दे रहे थे और पुरस्कृत कर रहे थे। सबसे आश्चर्य की बात ये लगा की सम्पादक महोदय ने भी उसे पहचान लिया।
समारोह समाप्त हुआ ,वापस कमरे पे आया और सोचा आज का वाक्या सोशल मीडिया पर साझा करते है,साझा करते ही बधाइयों का तांता लग गया जैसे की उसने कोइ रण जित लिया हो।कलम के लेखनी से जो प्यार मिला एक सुखद अनुभव दे ही रहा था तब तक इस खबर को एक ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल ने साझा कर दिया, गांव घर में खबर आग की तरह फैल गयी।
आज उसके पिताजी भी खुश लग रहे थे,मानो जैसे उसने सरकारी नौकरी ले ली हो।उनकी बातों और आँखों में आज उसके ऊपर विश्वास दिख रहा था।ये सब देख कर तो यही लग रहा था,उन्होंने भी अब उसकी लेखनी को थोड़ी जगह दे दी है और उसके कलम के सफर में हमसफ़र बनने को तैयार है।