सोलमेट
सोलमेट
'मधुरा' - यथा नाम तथा गुण ! एक बेहतरीन गायिका। लेकिन बेहद अंतर्मुखी, खोई खोई,और डरी डरी! उम्र 29 साल, अविवाहित। पुरुष जाति से बेहद नफरत करती है। माता पिता की इकलौती संतान। अपने पिता के अलावा किसी पुरुष से बात नहीं, किसी रिश्तेदार से बातचीत नहीं करती। माता पिता ने बहुत समझाया, कॉउंसलिंग करवाई पर मधुरा वैसी ही रही। माता पिता ने यह सोच कर कि विवाह के बाद स्वभाव में बदलाव आ जायेगा, कहना बन्द कर दिया। लड़कियों के स्कूल और लड़कियों के ही कॉलेज से शिक्षा ली। किसी गुरु से नहीं सीखा लेकिन स्वयं ही अभ्यास से बहुत मधुर गाती हैं। बचपन में दो बार एक सगे रिश्तेदार ने उस से गलत हरकत करने की कोशिश की। रिश्तों और पुरुषों से उसका विश्वास उठ गया। वह बहुत डर गई लेकिन डरपोक होने की वजह से किसी को नहीं बताया। न माँ को, न ही काउंसिलर को। वह अपनी ही दुनिया में सिमटती गयी। संगीत में अपने आप को उसने डुबो दिया।लेकिन किसी स्टेज पर नहीं गाया। कभी कभी पापा उसके गाने रिकॉर्ड करके यूट्यूब पर डाल देते है। लाखों लाइक्स मिलती हैं उसे। लेकिन मधुरा इन सब से उदासीन रहती है। पिछले चार साल से माता पिता उसके लिए रिश्ते ढूंढ रहे हैं, लेकिन वह साफ मना कर देती है। अनजान पुरुष के साथ ज़िन्दगी बिताने की मात्र कल्पना से वह सिहर उठती है। मन में निश्चय कर लिया है.. कि वह और संगीत बस यही उसकी जिंदगी होगी।
कल पापा की रिटायरमेंट है और उनके बॉस की भी। बॉस ने मधुरा की वीडिओज़ देखी हैं। वे उसके बड़े प्रशंसक हैं। उन्होंने पिता से इच्छा जाहिर की कि मधुरा दोनों की रिटायरमेंट पार्टी पर गाये। पिता के बहुत ज़्यादा आग्रह पर मधुरा मान गई।
पार्टी में एक के बाद एक फरमाइश होती गयी। मधुरा गाती रही। तबले पर संगत के लिए एक युवक को बुलाया गया था। काला चश्मा पहने था वह, शायद नेत्रहीन! नाम संगीत वर्मा। ऐसी अद्भुत जुगलबंदी, दो घंटे कैसे बीत गए पता ही नहीं चला। वह लगातार संगीत को देख रही थी। लेकिन संगीत सिर्फ मन की आँखों से कार्यक्रम को अनुभव कर रहा था। कार्यक्रम के अंत में संगीत ने मधुरा की खूब तारीफ की और एक अन्य कार्यक्रम में साथ गाने की पेशकश की। माता पिता हैरान थे और बेहद खुश कि मधुरा ने हाँ कर दी। मधुरा को संगीत का तारीफ करने बुरा नहीं लगा क्यों कि उसकी निगाहें उसके शरीर को नहीं देख रही थीं। आज मधुरा की किसी स्टेज पर पहली पब्लिक परफॉर्मेंस थी। संगीत की जुगलबंदी से उसके गीतों में चार चाँद लग गए। उसके बाद दो, तीन, चार ,पांच कार्यक्रम लगातार पेश किए। सभी अख़बारों में मधुरा और संगीत की चर्चा थी।
आज एक और कार्यक्रम था। कार्यक्रम की समाप्ति पर संगीत दरी में पाँव उलझने से लड़खड़ाया। मधुरा ने कस कर उसका हाथ थाम लिया। संगीत हँसा," रहने दो मधुरा! मुझे आदत है। आज तुमने संभाल लिया, कल कौन संभालेग।"
" मैं हूँ न ! मैं संभालूंगी", कहते हुए मधुरा ने फिर से संगीत का हाथ थाम लिया।
सामने से आते हुए मम्मी पापा को देख कर मधुरा मुस्कुरा कर बोली ," पापा, मैं बहुत खुश हूं। मैं कहती थी न कि मेरी ज़िंदगी संगीत है। देखिए मुझे मेरा सोलमेट मिल गया- संगीत वर्मा।"